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व्याघ्रायत

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'उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै: । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ।।' - एतत् सुभाषितं बहु प्रसिद्धम् । काष्ठविक्रेतुः देवदत्तस्य स्वकार्ये प्रवृत्तिः कथं जाता इति बोधयन्ती इयं कथा एतस्य सुभाषितस्य उदाहरणं भवितुम् अर्हति इति पश्यामः ।
(“केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य अष्टादशीयोजनान्तर्गततया एतासां कथानां ध्वनिप्रक्षेपणं क्रियते”)
We all know the famous saying, 'उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै: । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ।।' – 'Success is achieved through effort, not merely by wishful thinking.' This story illustrates how Devadatta, a wood seller, began to work with determination once again.

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