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प्रसन्नतायाः कारणम्

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कदाचित् सम्राट् श्रोणिकः भगवन्तं बुद्धं दृष्ट्वा पृच्छति - ‘सर्वविधानि सुखानि चेदपि कथं मनः प्रसन्नं न भवति इति । तदा बुद्धः वदति - ‘चापल्यत्यागः, विलासिजीवने अल्पप्रवृत्तिः, भोगसाधनानाम् उपयोगे न्यूनतासम्पादनम्, दयास्नेहादीनाम् अवलम्बनं, यावत् प्राप्येत तावता सन्तुष्टिः, दानशीलता इत्यादयाः अंशाः अवलम्बिताः चेत् प्रासादे अपि सन्तोषः प्रातुं शक्यः' इति ।
(“केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य अष्टादशीयोजनान्तर्गततया एतासां कथानां ध्वनिप्रक्षेपणं क्रियते”)
Once, King Shronika asked the Buddha: "Why does the mind not remain happy, even when all kinds of pleasures are available?" Buddha replied: "If one abandons impatience, leads a simple life, indulges little in luxuries, uses material possessions with moderation, relies on compassion and affection, remains content with whatever one has, practices generosity and similar virtues—only then can one attain true happiness, even within a palace".

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Once, King Shronika asked the Buddha: "Why does the mind not remain happy, even when all kinds of pleasures are available?" Buddha replied: "If one abandons impatience, leads a simple life, indulges little in luxuries, uses material possessions with moderation, relies on compassion and affection, remains content with whatever one has, practices generosity and similar virtues—only then can one attain true happiness, even within a palace".

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