सिंहासन बत्तीसी (संस्कृत:सिंहासन द्वात्रिंशिका, विक्रमचरित) एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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Stories of Singhasan Battisi : सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ


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33: सिंहासन बत्तीसी : बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती : Rani Roopvati
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रानी रुपवती बत्तीसवीं पुतली रानी रुपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है। राजा भोज ने कहा कि राजा विक्रमादित्य के देवताओं वाले गुणों की कथाएँ सुनकर उन्हें ऐसा लगा कि इतनी विशेषताएँ एक मनुष्य में असम्भव हैं और मानते हैं कि उनमें बहुत सारी…
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32: सिंहासन बत्तीसी : इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या : Kaushalya
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कौशल्या इकत्तीसवीं पुतली जिसका नाम कौशल्या था, ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने को लगाए रखते थे। उन्होंने वन में भी साधना के लिए एक आवास बना रखा था। एक दिन उसी आवास में एक रात उन्हें अलौकिक प्रकाश कहीं दूर से आत…
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31: सिंहासन बत्तीसी: तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी : Jaylakshmi
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जयलक्ष्मी तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी। उन्होंने अपने तप से जान लिया कि वे अब अधिक से अधिक छ: महीने जी सकते हैं। अपनी मृत्यु को आसन्न समझकर उन्होंने वन में एक कुटिया बनवा ली तथा राज-काज से बचा हुआ समय साधना में बिताने लगे। एक दिन राजमहल से कुटिया की तरफ आ रहे थे कि उनकी…
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30: सिंहासन बत्तीसी: उन्तीसवीं पुतली मानवती : Maanvati
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मानवती उन्तीसवीं पुतली मानवती ने इस प्रकार कथा सुनाई- राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर रात में घूमा करते थे। ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए। चाँदनी रात में नदी का जल चमकता हुआ बड़ा ही प्यारा दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। विक्रम चुपचाप नदी तट पर खड़े थे तभी उनके कानों में "बचाओ-बचाओ" की तेज आवाज पड़ी। वे आवाज की दिशा में दौड़े तो उन्हें नदी की …
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29: सिंहासन बत्तीसी: अट्ठाईसवीं पुतली वैदेही : Vadehi
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वैदेही अट्ठाइसवीं पुतली का नाम वैदेही था और उसने अपनी कथा इस प्रकार कही- एक बार राजा विक्रमादित्य अपने शयन कक्ष में गहरी निद्रा में लीन थे। उन्होंने एक सपना देखा। एक स्वर्ण महल है जिसमें रत्न, माणिक इत्यादि जड़े हैं। महल में बड़े-बड़े कमरे हैं जिनमें सजावट की अलौकिक चीज़े हैं। महल के चारों ओर उद्यान हैं और उद्यान में हज़ारों तरह के सुन्दर-सुन्दर फूलों स…
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28: सिंहासन बत्तीसी: सत्ताईसवीं पुतली मलयवती : Malaywati
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मलयवती मलयवती नाम की सताइसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- विक्रमादित्य बड़े यशस्वी और प्रतापी राजा था और राज-काज चलाने में उनका कोई मानी था। वीरता और विद्वता का अद्भुत संगम थे। उनके शस्र ज्ञान और शास्र ज्ञान की कोई सीमा नहीं थी। वे राज-काज से बचा समय अकसर शास्रों के अध्ययन में लगाते थे और इसी ध्येय से उन्होंने राजमहल के एक हिस्से में विशा…
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27: सिंहासन बत्तीसी : छ्ब्बीसवीं पुतली मृगनयनी : Mrignayni
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मृगनयनी मृगनयनी नामक छब्बीसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे किसी तपस्वी की भाँति अन्न-जल का त्याग कर लम्बे समय तक तपस्या में लीन रहे सकते थे। ऐसा कठोर तप कर सकते थे कि इन्द्रासन डोल जाए। एक बार उनके दरब…
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26: सिंहासन बत्तीसी: पच्चीसवीं पुतली त्रिनेत्री : Trinetri
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त्रिनेत्री त्रिनेत्री नामक पच्चीसवीं पुतली की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के सुख दुख का पता लगाने के लिए कभी-कभी वेश बदलकर घूमा करते थे तथा खुद सारी समस्या का पता लगाकर निदान करते थे। उनके राज्य में एक दरिद्र ब्राह्मण और भाट रहते थे। वे दोनों अपना कष्ट अपने तक ही सीमित रखते हुए जीवन-यापन कर रहे थे तथा कभी किसी के प्रति कोई शिकायत…
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25: सिंहासन बत्तीसी: चौबीसवीं पुतली करुणावती : Karunavati
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करुणावती चौबीसवीं पुतली करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्याओं की जानकारी उन्हें रहे, इसलिए वे भेष बदलकर रात में पूरे राज्य में, आज किसी हिस्से में, कल किसी और में घूमा करते थे। उनकी इस आदत का पता चोर-ड…
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24: सिंहासन बत्तीसी: तेईसवीं पुतली धर्मवती : Dharmvati Prabhavati
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धर्मवती तेइसवीं पुतली जिसका नाम धर्मवती था, ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारियों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से। बहस का अन्त नहीं हो रहा था, क्योंकि दरबारियों के दो गुट हो चुके थे। एक कहता था कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है क्…
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23: सिंहासन बत्तीसी: बाईसवीं पुतली अनुरोधवती : Anurodhvati
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अनुरोधवती अनुरोधवती नामक बाइसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता का सम्मान किया जाता था। चापलूसी जैसे दुर्गुण की उनके यहाँ कोई कद्र नहीं थी। यही सुनकर एक दिन एक युवक उनसे मिलने उनके द्वार तक आ पहुँचा। दरब…
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22: सिंहासन बत्तीसी: इक्कीसवीं पुतली चंद्र्ज्योति : Chandrjyoti
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चन्द्रज्योति चन्द्रज्योति नामक इक्कीसवीं पुतली की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस पर विचार करने लगे। काफी सोच विचार के बाद उन्हें लगा कि महामंत्री ही इस कार्य के लिए सर्वोत्तम रहेंगे। उन्होंने महामंत्री को बुलाकर उनसे…
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21: सिंहासन बत्तीसी: बीसवीं पुतली ज्ञानवती : Gyanvati
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ज्ञानवती बीसवीं पुतली ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों, लेखकों और कलाकारों को जगह दे रखी थी तथा उनके अनुभव और ज्ञान का भरपूर सम्मान करते थे। एक दिन वे वन में किसी कारण विचरण कर रहे थे तो उनके कानों मे…
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20: सिंहासन बत्तीसी: उन्नीसवीं पुतली रूपरेखा : Rooprekha
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रुपरेखा रुपरेखा नामक उन्नीसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित होते थे जिनका कोई समाधान उन्हें नहीं सूझता था। विक्रम उन प्रश्नों का ऐसा सटीक हल निकालते थे कि प्रश्नकर्त्ता पूर्ण सन्तुष्ट हो जाता था। ऐसे ही एक टेढ़े प्रश्न को …
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19: सिंहासन बत्तीसी: अट्ठारहवीं पुतली तारामती : Taramati
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तारावती अठारहवीं पुतली तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान तथा कलाकार मौजूद थे, फिर भी अन्य राज्यों से भी योग्य व्यक्ति आकर उनसे अपनी योग्यता के अनुरुप आदर और पारितोषिक प्राप्त करते थे। एक दिन विक्रम के दरबार में दक…
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18: सिंहासन बत्तीसी: सत्रहवीं पुतली विद्यावती : Vidyavati
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विद्यावती विद्यावती नामक सत्रहवीं पुतली ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या को तत्काल हल कर दिया जाता था। प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट देने वाले अधिकारी को दण्डित किया जाता था। इसलिए कहीं से भी किसी तरह की शिकायत न…
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17: सिंहासन बत्तीसी: सोलहवीं पुतली सत्यवती : Satyavati
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सत्यवती सोलहवीं पुतली सत्यवती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन नगरी का यश चारों ओर फैला हुआ था। एक से बढ़कर एक विद्वान उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे और उनकी नौ जानकारों की एक समिति थी जो हर विषय पर राजा को परामर्श देते थे, तथा राजा उनके परामर्श के अनुसार ही राज-काज सम्बन्धी निर्णय लिया करते थे। एक बार ऐश्वर्य प…
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16: सिंहासन बत्तीसी: पंद्रहवीं पुतली सुन्दरबती : Sunderbati
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सुन्दरवती पन्द्रहवीं पुतली की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन राज्य की समृद्धि आकाश छूने लगी थी। व्यापारियों का व्यापार अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि दूर के देशों तक फैला हुआ था। उन दिनों एक सेठ हुआ जिसका नाम पन्नालाल था। वह बड़ा ही दयालु तथा परोपकारी था। चारों ओर उसका यश था। वह दीन-दुखियों की सहायता के लिए सतत तैयार…
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15: सिंहासन बत्तीसी: चौदहवीं पुतली सुनयना : Sunyana
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सुनयना चौदहवीं पुतली सुनयना ने जो कथा की वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा न्यायप्रिय, दानी और त्यागी और कोई न था। इन नृपोचित गुणों के अलावा उनमें एक और गुण था। वे बहुत बड़े शिकारी थे तथा निहत्थे भी हिंसक से हिंसक जानवरों का वध कर सकते थे। उन्हें पता चला कि एक हिंसक सिंह बहुत उत्पात मचा रहा है और कई लोगों का भ…
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14: सिंहासन बत्तीसी: तेरहवीं पुतली कीर्तिमती : Kirtimati
8:09
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कीर्तिमती तेरहवीं पुतली कीर्तिमती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर चर्चा चली कि संसार में सबसे बड़ा दानी कौन है। सभी ने एक स्वर से विक्रमादित्य को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दानवीर घोषित किया। राजा विक्रमादित्य लोगों …
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13: सिंहासन बत्तीसी: बारहवीं पुतली पद्मावती Singhasan Batteesi : Barahveen Putli Padmavati
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पद्मावती बारहवीं पुतली पद्मावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चाँद अपने यौवन पर था तथा सब कुछ इतना साफ़-साफ़ दिख रहा था, मानों दिन हो। प्रकृति की सुन्दरता में राजा एकदम खोए हुए थे। सहसा वे चौंक गए। किसी स्री की चीख थी। चीख की दिशा का अनुमान लगाया। लगातार कोई औरत…
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12: सिंहासन बत्तीसी: ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचनी : Trilochani
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त्रिलोचनी ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचनी जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने की ठानी। असंख्य राजा-महाराजाओं, पण्डितों और ॠषियों को आमन्त्रित किया। यहाँ तक कि देवताओं को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। पवन देवता को उन्होंने खुद निमन…
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11: सिंहासन बत्तीसी: दसवीं पुतली प्रभावती : Prabhavati
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प्रभावती दसवीं पुतली प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उन्हें नज़र नहीं आए। उसी समय उन्होंने देखा कि एक सुदर्शन युवक एक पेड़ पर चढ़ा और एक शाखा से उसने एक रस्सी बाँधी। रस्सी में फंदा बना था उस फन्दे में…
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10: सिंहासन बत्तीसी: नवीं पुतली मधुमालती : Madhumalti
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मधुमालती नवीं पुतली मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में प्राणोत्सर्ग करने की भावना झलकती है। कथा इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। कई दिनों तक यज्ञ चलता रहा। एक दिन राजा मंत्र-पाठ कर रहे, तभी एक ॠषि वहाँ पधारे। राजा ने उन्हें देखा, पर यज्ञ छोड़कर उठन…
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9: सिंहासन बत्तीसी: आठवीं पुतली पुष्पवती : Pushpvati
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पुष्पवती आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे। उन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था। वे कलाकृतियों का मूल्य आँककर बेचनेवाले को मुँह माँगा दाम देते थे। एक दिन वे अपने दरबारियों के बीच बैठे थे कि किसी ने खबर दी कि एक आदमी काठ का घोड़ा बेचना चाहता है। राजा ने देखना चाहा कि उस काठ के घोड़े की…
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8: सिंहासन बत्तीसी: सातवीं पुतली कौमुदी : Kaumudi
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कौमुदी सातवीं पुतली कौमुदी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने शयन-कक्ष में सो रहे थे। अचानक उनकी नींद करुण-क्रन्दन सुनकर टूट गई। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो रोने की आवाज नदी की तरफ से आ रही थी और कोई स्री रोए जा रही थी। विक्रम की समझ में नहीं आया कि कौन सा दुख उनके राज्य में किसी स्री को इतनी रात गए बिलख-बिलख कर रोने को व…
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7: सिंहासन बत्तीसी: छठी पुतली रविभामा : Ravibhama
6:53
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रविभामा छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। बरसात का महीना था, इसलिए नदी उफन रही थी और अत्यन्त तेज़ी से बह रही थी। इतने में उनकी नज़र एक पुरुष, एक स्री और एक बच्चे पर पड़ी। उनके वस्र तार-तार थे और चेहरे पीले। राजा देखते ही समझ गए ये बहुत ही निर्धन ह…
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6: सिंहासन बत्तीसी: पाँचवी पुतली लीलावती : Leelavati
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लीलावती पाँचवीं पुतली लीलावती ने भी राजा भोज को विक्रमादित्य के बारे में जो कुछ सुनाया उससे उनकी दानवीरता ही झलकती थी। कथा इस प्रकार थी- हमेशा की तरह एक दिन विक्रमादित्य अपने दरबार में राजकाज निबटा रहे थे तभी एक ब्राह्मण दरबार में आकर उनसे मिला। उसने उन्हें बताया कि उनके राज्य की जनता खुशहाल हो जाएगी और उनकी भी कीर्ति चारों तरफ फैल जाएगी, अगर वे तु…
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5: सिंहासन बत्तीसी: चौथी पुतली कामकंदला : Kamkandla
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कामकंदला चौथी पुतली कामकंदला की कथा से भी विक्रमादित्य की दानवीरता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अन्दर लाया जाए। जब ब्राह्मण उनसे मिला तो विक्रम ने उसके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण …
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4: सिंहासन बत्तीसी: तीसरी पुतली चंद्रलेखा : Chandralekha
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चन्द्रकला तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसको जो भी मिलता है भाग्य से मिलता है परिश्रम की कोई भूमिका नहीं होती है। उनके विवाद ने ऐसा उग्र रुप ग्रहण कर लिया कि दोनों को देवराज इन्द्र के …
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3: सिंहासन बत्तीसी: दूसरी पुतली चित्रलेखा : Chitrlekha
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चित्रलेखा दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उसे श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके लौटने लगे। उनके मुड़ते ही साधु ने आवाज़ दी और उन्हें रुकने को कहा। विक्रमादित्य रुक गए और साधु ने उनसे प्रसन्न होकर…
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2: सिंहासन बत्तीसी: पहली पुतली रत्नमञ्जरी : Ratnmanjri
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द्वारा sangya tandon
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1: सिंहासन बत्तीसी : क्यों, कहाँ, कैसे Sinhasan Battisi kyon, kya, kaise
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प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी ३२ कथाओं का संग्रह है जो बेताल पंचविशाति की भांति लोकप्रिय हुआ। संभवत: यह संस्कृत की रचना है जो उत्तरी संस्करण में "सिंहासन द…