कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Kharab Television Par Pasandeeda Programme | Satyam Tiwari
3:00
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3:00ख़राब टेलीविज़न पर पसंदीदा प्रोग्राम देखते हुए | सत्यम तिवारी दीवारों पर उनके लिए कोई जगह न थी और नए का प्रदर्शन भी आवश्यक था इस तरह वे बिल्लियों के रास्ते में आए और वहाँ से हटने को तैयार न हुए यहीं से उनकी दुर्गति शुरू हुई उनका सुसज्जित थोबड़ा बिना ईमान के डर से बिगड़ गया अपने आधे चेहरे से आदेशवत हँसते हुए वे बिल्कुल उस शोकाकुल परिवार की तरह लगते जि…
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Baat Karni Mujhe Mushkil | Bahadur Shah Zafar
2:43
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2:43बात करनी मुझे मुश्किल । बहादुर शाह ज़फ़र बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू कि तबीअ'त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़ सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी च…
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बहुत दूर का एक गाँव | धीरज कोई भी बहुत दूर का एक गाँव एक भूरा पहाड़ बच्चा भूरा और बूढ़ा पहाड़ साँझ को लौटती भेड़ और दूर से लौटती शाम रात से पहले का नीला पहाड़ था वही भूरा पहाड़। भूरा बच्चा, भूरा नहीं, नीला पहाड़, गोद में लिए, आँखों से। उतर आता है शहर एक बाज़ार में थैला बिछाए, बीच में रख देता है, नीला पहाड़। और बेचने के बाद का, बचा नीला पहाड़ अगली सु…
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सूअर के छौने । अनुपम सिंह बच्चे चुरा आए हैं अपना बस्ता मन ही मन छुट्टी कर लिये हैं आज नहीं जाएँगे स्कूल झूठ-मूठ का बस्ता खोजते बच्चे मन ही मन नवजात बछड़े-सा कुलाँच रहे हैं उनकी आँखों ने देख लिया है आश्चर्य का नया लोक बच्चे टकटकी लगाए आँखों में भर रहे हैं अबूझ सौन्दर्य सूअरी ने जने हैं गेहुँअन रंग के सात छौने ये छौने उनकी कल्पना के नए पैमाने हैं सूर…
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Ma Nahin Thi Wah | Vishwanath Prasad Tiwari
1:23
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1:23माँ नहीं थी वह । विश्वनाथ प्रसाद तिवारी माँ नहीं थी वह आँगन थी द्वार थी किवाड़ थी, चूल्हा थी आग थी नल की धार थी।द्वारा Nayi Dhara Radio
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उलाहना।अज्ञेय नहीं, नहीं, नहीं! मैंने तुम्हें आँखों की ओट किया पर क्या भुलाने को? मैंने अपने दर्द को सहलाया पर क्या उसे सुलाने को? मेरा हर मर्माहत उलाहना साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा! ओ मेरे प्यार! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा तो यों नहीं कि मैंने बिछोह को कभी भी स्वीकारा। नहीं, नहीं, नहीं!…
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Pansokha Hai Indradhanush | Madan Kashyap
6:20
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6:20पनसोखा है इन्द्रधनुष - मदन कश्यप पनसोखा है इन्द्रधनुष आसमान के नीले टाट पर मखमली पैबन्द की तरह फैला है। कहीं यह तुम्हारा वही सतरंगा दुपट्टा तो नहीं जो कुछ ऐसे ही गिर पड़ा था मेरे अधलेटे बदन पर तेज़ साँसों से फूल-फूल जा रहे थे तुम्हारे नथने लाल मिर्च से दहकते होंठ धीरे-धीरे बढ़ रहे थे मेरी ओर एक मादा गेहूँअन फुंफकार रही थी क़रीब आता एक डरावना आकर्षण थ…
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बुद्धू।शंख घोष मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल कोई हो जाये यदि बुद्धू अकस्मात, यह तो वह जान नहीं पाएगा खुद से। जान यदि पाता यह फिर तो वह कहलाता बुद्धिमान ही। तो फिर तुम बुद्धू नहीं हो यह तुमने कैसे है लिया जान?द्वारा Nayi Dhara Radio
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मेरी ख़ता । अमृता प्रीतम अनुवाद : अमिया कुँवर जाने किन रास्तों से होती और कब की चली मैं उन रास्तों पर पहुँची जहाँ फूलों लदे पेड़ थे और इतनी महक थी— कि साँसों से भी महक आती थी अचानक दरख़्तों के दरमियान एक सरोवर देखा जिसका नीला और शफ़्फ़ाफ़ पानी दूर तक दिखता था— मैं किनारे पर खड़ी थी तो दिल किया सरोवर में नहा लूँ मन भर कर नहाई और किनारे पर खड़ी जिस्म…
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पुरानी बातें | श्रद्धा उपाध्याय पहले सिर्फ़ पुरानी बातें पुरानी लगती थीं अब नई बातें भी पुरानी हो गई हैं मैंने सिरके में डाल दिए हैं कॉलेज के कई दिन बचपन की यादें लगता था सड़ जाएँगी फिर किताबों के बीच रखी रखी सूख गईं कितनी तरह की प्रेम कहानियाँ उन पर नमक घिस कर धूप दिखा दी है ज़रुरत होगी तो तल कर परोस दी जाएँगी और इतना कुछ फ़िसल हुआ हाथों से क्योंकि नह…
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ख़ाली मकान।मोहम्मद अल्वी जाले तने हुए हैं घर में कोई नहीं ''कोई नहीं'' इक इक कोना चिल्लाता है दीवारें उठ कर कहती हैं ''कोई नहीं'' ''कोई नहीं'' दरवाज़ा शोर मचाता है कोई नहीं इस घर में कोई नहीं लेकिन कोई मुझे इस घर में रोज़ बुलाता है रोज़ यहाँ मैं आता हूँ हर रोज़ कोई मेरे कान में चुपके से कह जाता है ''कोई नहीं इस घर में कोई नहीं पगले किस से मिलने रोज…
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Kahan Tak Waqt Ke Dariya Ko | Shahryar
2:02
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2:02कहाँ तक वक़्त के दरिया को । शहरयार कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें ये हसरत है कि इन आँखों से कुछ होता हुआ देखें बहुत मुद्दत हुई ये आरज़ू करते हुए हम को कभी मंज़र कहीं हम कोई अन-देखा हुआ देखें सुकूत-ए-शाम से पहले की मंज़िल सख़्त होती है कहो लोगों से सूरज को न यूँ ढलता हुआ देखें हवाएँ बादबाँ खोलीं लहू-आसार बारिश हो ज़मीन-ए-सख़्त तुझ को फू…
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फ़्री विल । दर्पण साह अगस्त का महिना हमेशा जुलाई के बाद आता है, ये साइबेरियन पक्षियों को नहीं मालूम मैं कोई निश्चित समय-अंतराल नहीं रखता दो सिगरेटों के बीच खाना ठीक समय पर खाता हूँ और सोता भी अपने निश्चित समय पर हूँ अपने निश्चित समय पर क्रमशः जब नींद आती है और जब भूख लगती है इससे ज़्यादा ठीक समय का ज्ञान नहीं मुझे जब चीटियों की मौत आती है, तब उनके प…
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Prarthna | Antonio Rinaldi | Translation - Dharamvir Bharti
1:42
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1:42प्रार्थना। अन्तोन्यो रिनाल्दी अनुवाद : धर्मवीर भारती सई साँझ आँखें पलकों में सो जाती हैं अबाबीलें घोसलों में और ढलते दिन में से आती हुई एक आवाज़ बतलाती है मुझे अँधेरे में भी एक संपूर्ण दृष्टि है मैं भी थक कर पड़ रहा हूँ जैसे उदास घास की गोद में फूल धूप के साथ सोने के लिए हवा हमारी रखवाली करे— हमें जीत ले यह आस्मान की निचाट ज़िंदगी जो हर दर्द को धारण…
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Lagta Nahi Hai Dil Mera | Bahadur Shah Zafar
2:11
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2:11लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में । बहादुर शाह ज़फ़र लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार मे…
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Ghaas | Carl Sandburg | Translation - Dharamvir Bharti
1:45
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1:45घास । कार्ल सैंडबर्ग अनुवाद : धर्मवीर भारती आस्टरलिज़ हो या वाटरलू लाशों का ऊँचे से ऊँचा ढेर हो— दफ़ना दो; और मुझे अपना काम करने दो! मैं घास हूँ, मैं सबको ढँक लूँगी और युद्ध का छोटा मैदान हो या बड़ा और युद्ध नया हो या पुराना ढेर ऊँचे से ऊँचा हो, बस मुझे मौक़ा भर मिले दो बरस, दस बरस—और फिर उधर से गुज़रने वाली बस के मुसाफ़िर पूछेंगे : यह कौन सी जगह है? ह…
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Jo Ulajh Kar Rah Gayi Filon Ke Jaal Mein | Adam Gondvi
1:48
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1:48जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में । अदम गोंडवी जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसा…
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आस्था | प्रियाँक्षी मोहन इस दुनिया को युद्धों ने उतना तबाह नहीं किया जितना तबाह कर दिया प्यार करने की झूठी तमीज़ ने प्यार जो पूरी दुनिया में वैसे तो एक सा ही था पर उसे करने की सभी ने अपनी अपनी शर्त रखी और प्यार को कई नाम, कविताओं, कहानियों, फूलों, चांद तारों और जाने किन किन उपमाओं में बांट दिया जबकि प्यार को उतना ही नग्न और निहत्था होना था जितना कि…
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अनुभव | नीलेश रघुवंशी तो चलूँ मैं अनुभवों की पोटली पीठ पर लादकर बनने लेखक लेकिन मैंने कभी कोई युद्ध नहीं देखा खदेड़ा नहीं गया कभी मुझे अपनी जगह से नहीं थर्राया घर कभी झटकों से भूकंप के पानी आया जीवन में घड़ा और बारिश बनकर विपदा बनकर कभी नहीं आई बारिश दंगों में नहीं खोया कुछ भी न खुद को न अपनों को किसी के काम न आया कैसा हलका जीवन है मेरा तिस पर मुझे…
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स्त्री का चेहरा। अनीता वर्मा इस चेहरे पर जीवन भर की कमाई दिखती है पहले दुख की एक परत फिर एक परत प्रसन्नता की सहनशीलता की एक और परत एक परत सुंदरता कितनी किताबें यहाँ इकट्ठा हैं दुनिया को बेहतर बनाने का इरादा और ख़ुशी को बचा लेने की ज़िद एक हँसी है जो पछतावे जैसी है और मायूसी उम्मीद की तरह एक सरलता है जो सिर्फ़ झुकना जानती है एक घृणा जो कभी प्रेम का …
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Jeb Mein Sirf Do Rupaye | Kumar Ambuj
2:13
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2:13जेब में सिर्फ़ दो रुपये - कुमार अम्बुज घर से दूर निकल आने के बाद अचानक आया याद कि जेब में हैं सिर्फ दो रुपये सिर्फ़ दो रुपये होने की असहायता ने घेर लिया मुझे डर गया मैं इतना कि हो गया सड़क से एक किनारे एक व्यापारिक शहर के बीचोबीच खड़े होकर यह जानना कितना भयावह है कि जेब में है कुल दो रुपये आस पास से जा रहे थे सैकड़ों लोग उनमें से एक-दो ने तो किया मुझे न…
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18 Number Bench Par | Doodhnath Singh
1:57
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1:5718 नम्बर बेंच पर। दूधनाथ सिंह 18 नम्बर बेंच पर कोई निशान नहीं चारों ओर घासफूस –- जंगली हरियाली कीड़े-मकोड़े मच्छर अँधेरा वर्षा से धुली हरी-चिकनी काई की लसलस चींटियों के भुरेभुरे बिल –- सन्नाटा बैठा सन्नाटा । क्षण वह धुल-पुँछ बराबर कौन यहाँ आया बदलती प्रकृति के अलावा प्रशासनिक भवन से दूर कुलसचिव के सुरक्षा-गॉर्ड की नज़रों से बाहर ऋत्विक घटक की डोलती…
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नन्ही पुजारन।असरार-उल-हक़ मजाज़ इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन पतली बाँहें पतली गर्दन भोर भए मंदिर आई है आई नहीं है माँ लाई है वक़्त से पहले जाग उठी है नींद अभी आँखों में भरी है ठोड़ी तक लट आई हुई है यूँही सी लहराई हुई है आँखों में तारों की चमक है मुखड़े पे चाँदी की झलक है कैसी सुंदर है क्या कहिए नन्ही सी इक सीता कहिए धूप चढ़े तारा चमका है पत्थर पर इक फ…
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Mujhe Sneh Kya Mil Na Sakega? | Suryakant Tripathi Nirala
1:43
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1:43मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा? स्तब्ध, दग्ध मेरे मरु का तरु क्या करुणाकर खिल न सकेगा? जग के दूषित बीज नष्ट कर, पुलक-स्पंद भर, खिला स्पष्टतर, कृपा-समीरण बहने पर, क्या कठिन हृदय यह हिल न सकेगा? मेरे दु:ख का भार, झुक रहा, इसीलिए प्रति चरण रुक रहा, स्पर्श तुम्हारा मिलने पर, क्या महाभार यह झिल न सक…
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शुद्धिकरण | हेमंत देवलेकर इतनी बेरहमी से निकाले जा रहे छिलके पानी के कि ख़ून निकल आया पानी का उसकी आत्मा तक को छील डाला रंदे से यह पानी को छानने का नहीं उसे मारने का दृश्य है एक सेल्समैन घुसता है हमारे घरों में भयानक चेतावनी की भाषा में कि संकट में हैं आप के प्राण और हम अपने ही पानी पर कर बैठते हैं संदेह जब वह कांच के गिलास में पानी को बांट देता है …
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प्रेम और घृणा | नताशा तुम भेजना प्रेम बार-बार भेजना भले ही मैं वापस कर दूँ लौटेगा प्रेम ही तुम्हारे पास पर मत भेजना कभी घृणा घृणा बंद कर देती है दरवाज़े अँधेरे में क़ैद कर लेती है हम प्रेम सँजो नहीं पाते और घृणा पाल बैठते हैं प्रेम के बदले न भी लौटा प्रेम तो लौटेगी चुप्पी बेबसी प्रेम अपरिभाषित ही सही घृणा परिभाषा से भी ज़्यादा कट्टर होती है!…
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Antardwand | Alain Bosquet | Translation - Dharamvir Bharti
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1:40अंतर्द्वंद | आलेन बास्केट अनुवाद : धर्मवीर भारती मेरा बायाँ हाथ मुझे प्राणदंड देता है मेरा दायाँ हाथ मेरी रक्षा करता है मेरी आँखें मुझे निर्वासन देती हैं मेरी वाणी मुझे प्रताड़ित करती है : अब समय आ गया है कि तुम अपने साथ संधिपत्र पर हस्ताक्षर कर दो! और इस पुराने हृदय में हज़ारों लड़ाइयाँ लड़ी जा रही हैं मेरे शत्रु और मेरे हताश मित्रों के बीच जो अंत …
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जहाज़ का पंछी | कृष्णमोहन झा जैसे जहाज़ का पंछी अनंत से हारकर फिर लौट आता है जहाज़ पर इस जीवन के विषन्न पठार पर भटकता हुआ मैं फिर तुम्हारे पास लौट आया हूँ स्मृतियाँ भाग रही हैं पीछे की तरफ़ समय दौड़ रहा आगे धप्-धप् और बीच में प्रकंपित मैं अपने छ्लछ्ल हृदय और अश्रुसिक्त चेहरे के साथ तुम्हारी गोद में ऐसे झुका हूँ जैसे बहते हुए पानी में पेड़ों के प्रत…
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Pyar Ke Bahut Chehre Hain | Navin Sagar
2:06
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2:06प्यार के बहुत चेहरे हैं / नवीन सागर मैं उसे प्यार करता यदि वह ख़ुद वह होती मैं अपना हृदय खोल देता यदि वह अपने भीतर खुल जाती मैं उसे छूता यदि वह देह होती और मेरे हाथ होते मेरे भाव! मैं उसे प्यार करता यदि मैं पत्ता या हवा होता या मैं ख़ुद को नहीं जानता मैं जब डूब रहा था वह उभर रही थी जिस पल उसकी झलक दिखी मैं कभी-कभी डूब रहा हूँ वह अभी-अभी अपने भीतर उ…
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Kai Aankhon Ki Hairat They Nahi Hain | Aks Samastipuri
1:30
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1:30कई आँखों की हैरत थे नहीं हैं | अक्स समस्तीपुरी कई आँखों की हैरत थे नहीं हैं नये मंज़र की सूरत थे नहीं हैं बिछड़ने पर तमाशा क्यों बनाएँ तुम्हारी हम ज़रूरत थे नहीं हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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Awara Ke Daag Chahiye | Devi Prasad Mishra
2:15
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2:15द्वारा Nayi Dhara Radio
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द्वारा Nayi Dhara Radio
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मैं उड़ जाऊँगा | राजेश जोशी सबको चकमा देकर एक रात मैं किसी स्वप्न की पीठ पर बैठकर उड़ जाऊँगा हैरत में डाल दूँगा सारी दुनिया को सब पूछते बैठेंगे कैसे उड़ गया ? क्यों उड़ गया ? तंग आ गया हूँ मैं हर पल नष्ट हो जाने की आशंका से भरी इस दुनिया से और भी ढेर तमाम जगह हैं इस ब्रह्मांड में मैं किसी भी दुसरे ग्रह पर जाकर बस जाऊँगा मैं तो कभी का उड़ गया होता च…
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Dekho Socho Samjho | Bhagwati Charan Verma
2:51
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2:51देखो-सोचो-समझो | भगवतीचरण वर्मा देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो इसको, उसको, सम्भव हो निज को पहचानो लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो, जीवन की धारा में अपने को बहने दो तुम जो कुछ हो वही रहोगे, मेरी मानो । वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से प…
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इसीलिए | गगन गिल वह नहीं होगा कभी भी फाँसी पर झूलता हुआ आदमी वारदात की ख़बरें पढ़ते हुए सोचता था वह गर्दन के पीछे हो रही सुरसुरी को वह मुल्तवी करता रहता था तमाम ख़बरों के बावजूद सोचता था अपने लिए एक बिलकुल अलग अंत इसीलिए जब अंत आया तो अलग तरह से नहीं आयाद्वारा Nayi Dhara Radio
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Ve Sab Meri Hi Jaati Se Thin | Rupam Mishra
4:39
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4:39वे सब मेरी ही जाति से थीं | रूपम मिश्र मुझे तुम ने समझाओ अपनी जाति को चीन्हना श्रीमान बात हमारी है हमें भी कहने दो ये जो कूद-कूद कर अपनी सहुलियत से मर्दवाद का बहकाऊ नारा लगाते हो उसे अपने पास ही रखो तुम बात सत्ता की करो जिसने अपने गर्वीले और कटहे पैर से हमेशा मनुष्यता को कुचला है जिसकी जरासन्धी भुजा कभी कटती भी है तो फिर से जुड़ जाती है रामचरितमानस…
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स्मृति पिता | वीरेन डंगवाल एक शून्य की परछाईं के भीतर घूमता है एक और शून्य पहिये की तरह मगर कहीं न जाता हुआ फिरकी के भीतर घूमती एक और फिरकी शैशव के किसी मेले कीद्वारा Nayi Dhara Radio
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वे दिन और ये दिन | रामदरश मिश्र तब वे दिन आते थे उड़ते हुए इत्र-भीगे अज्ञात प्रेम-पत्र की तरह और महमहाते हुए निकल जाते थे उनकी महमहाहट भी मेरे लिए एक उपलब्धि थी। अब ये दिन आते हैं सरकते हुए सामने जमकर बैठ जाते हैं। परीक्षा के प्रश्न-पत्र की तरह आँखों को अपने में उलझाकर आह! हटते ही नहीं ये दिन जिनका परिणाम पता नहीं कब निकलेगा।…
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वालिद की वफ़ात पर | निदा फ़ाज़ली तुम्हारी क़ब्र पर मैं फ़ातिहा पढ़ने नहीं आया मुझे मालूम था तुम मर नहीं सकते तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिस ने उड़ाई थी वो झूटा था वो तुम कब थे कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से मिल के टूटा था मिरी आँखें तुम्हारे मंज़रों में क़ैद हैं अब तक मैं जो भी देखता हूँ सोचता हूँ वो वही है जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी कही…
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Devi Banne Ki Raah Mein | Priya Johri 'Muktipriya'
2:57
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2:57देवी बनने की राह में | प्रिया जोहरी 'मुक्ति प्रिया' देवी बनने की राह में लंबा सफ़र तय किया हमने कई भूमिकाऐँ बदली आंसू की बूंदो का स्वाद चखा खून बहाया कटा चीरा ख़ुद को अपमान के साथ झेली कई यातनाएँ हमने छोड़ा अपना घर पुराने खिलौंने अपनी प्रिय सखी अपना शहर हमने छोड़ दिया अपने सपनों को और छोटी-छोटी आशाओं को नहीं देखा कभी खुल कर शहर को नहीं जान पाए हम ख…
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Main Sabse Choti Hun | Sumitranandan Pant
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1:45मैं सबसे छोटी हूँ | सुमित्रानंदन पन्त मैं सबसे छोटी होऊँ, तेरा अंचल पकड़-पकड़कर फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ, कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ! बड़ा बनाकर पहले हमको तू पीछे छलती है मात! हाथ पकड़ फिर सदा हमारे साथ नहीं फिरती दिन-रात! अपने कर से खिला, धुला मुख, धूल पोंछ, सज्जित कर गात, थमा खिलौने, नहीं सुनाती हमें सुखद परियों की बात! ऐसी बड़ी न होऊँ मैं तेरा स्नेह न…
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Aapki Yaad Aati Rahi Raat Bhar | Makdoom Mohiuddin
2:01
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2:01आप की याद आती रही रात भर | मख़दूम मुहिउद्दीन आप की याद आती रही रात भर चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर रात भर दर्द की शम्अ जलती रही ग़म की लौ थरथराती रही रात भर बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा याद बन बन के आती रही रात भर याद के चाँद दिल में उतरते रहे चाँदनी जगमगाती रही रात भर कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा कोई आवाज़ आती रही रात भर…
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Khidki Par Subah | TS Eliot | Translation - Dharmvir Bharti
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1:46खिड़की पर सुबह | टी. एस. एलियट अनुवाद : धर्मवीर भारती नीचे के बावर्चीख़ाने में खड़क रही हैं नाश्ते की तश्तरियाँ और सड़क के कुचले किनारों के बग़ल-बग़ल— मुझे जान पड़ता है—कि गृहदासियों की आर्द्र आत्माएँ अहातों के फाटकों पर अंकुरित हो रही हैं, विषाद भरी कुहरे की भूरी लहरें ऊपर मुझ तक उछाल रही हैं। सड़क के तल्ले से तुड़े मुड़े हुए चेहरे और मैले कपड़ों में…
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यहाँ सब ठीक है | धीरज शहर जाने वालों के पास हमेशा नहीं होते होंगे वापस लौटने के पैसे ऐसे में वो ढूंढते होंगे कुछ, और उसी कुछ का सब कुछ कि जैसे सब कुछ का चाय-पानी सब कुछ का नून- तेल सब कुछ का दाल-चावल और ऐसे में, और जब कोई नया आता होगा शहर तो उससे पूछते होंगे बरसात मेला, कजरी चैत करते होंगे ढेरों फ़ोन पर बात और दोहराते होंगे बस यह बात कि यहाँ सब ठीक…
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Yah Main Samajh Nahi Pati | Adiba Khanum
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3:43यह मैं समझ नहीं पाती| अदीबा ख़ानम यह मैं समझ नहीं पाती हम आख़िर किस संकोच से घिर-घिर के पछ्छाड़े खाते हैं। बार-बार भागते हैं अंदर की ओर अंदर जहां सुरक्षा है अपनी ही बनाई दीवारों की अंदर जहां अंधेरा है. एक सुखद शान्त अंधेरा। वह कौन सी हड़डी है जो गले में अटकी है और जिसे जब चाहे निकालकर फेंका जा सकता है। लेकिन क्यों इस हड़डी का चुभते रहना हमें आनंद दे…
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Bhagwan Ke Dakiye | Ramdhari Singh Dinkar
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1:42भगवान के डाकिए | रामधारी सिंह दिनकर पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरते हुए पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। और एक देश का भाप …
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मायका | अन्वेषा राय 'मंदाकिनी' हिंदी के शब्दकोश में प्रत्येक शब्द का एक अर्थ लिखा है, मगर एक शब्द है जिसका अर्थ ना मुंशी जी को पता है, ना महादेवी को और ना ही मुझे.. “मायका" पढ़ने - पढाने के लिए हमें मायके का मतलब “मा का घर" रटवा दिया गया है ।! पर हर स्त्री, जब भी लांघती है ससुराल की दहलीज़, मायके जाने के लिए, तो आगे बढने से पूर्व उसके मन में एक सवाल…
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पिता का हत्यारा | मदन कश्यप उसके हाथ में एक फूल होता है जो मुझे चाकू की तरह दिखता है सच तो यह है कि वह चाकू ही होता है जो कैमरों में फूल जैसा दिखता है और उन तमाम लोगों को भी फूल ही दिखता है जो अपनी आँखों से नहीं देखते वह मेरे पिता का हत्यारा है रोज़ ही मिलता है टेलेविज़न चैनलों और अख़बारों में ही नहीं कभी-कभार सड़कों पर आमने-सामने भी मैं इतना डर जाता …
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जनहित का काम | केदारनाथ सिंह मेह बरसकर खुल चुका था खेत जुतने को तैयार थे एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था और एक चिड़िया बार-बार बार-बार उसे अपनी चोंच से उठाने की कोशिश कर रही थी मैंने देखा और मैं लौट आया क्योंकि मुझे लगा मेरा वहाँ होना जनहित के उस काम में दखल देना होगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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एक अजीब-सी मुश्किल | कुँवर नारायण एक अजीब-सी मुश्किल में हूँ इन दिनों— मेरी भरपूर नफ़रत कर सकने की ताक़त दिनोंदिन क्षीण पड़ती जा रही अंग्रेज़ों से नफ़रत करना चाहता जिन्होंने दो सदी हम पर राज किया तो शेक्सपीयर आड़े आ जाते जिनके मुझ पर न जाने कितने एहसान हैं मुसलमानों से नफ़रत करने चलता तो सामने ग़ालिब आकर खड़े हो जाते अब आप ही बताइए किसी की कुछ चलती …
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