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Storybox with Jamshed Qamar Siddiqui

Aaj Tak Radio

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साप्ताहिक
 
जमशेद क़मर सिद्दीकी के साथ चलिए कहानियों की उन सजीली गलियों में जहां हर नुक्कड़ पर एक नया किरदार है, नए क़िस्से, नए एहसास के साथ ये कहानियां आपको कभी हसाएंगी, कभी रुलाएंगी और कभी गुदगुदाएंगी भी चलिए, गुज़रे वक्त की यादों को कहानियों में फिर जीते हैं, नए की तरफ बढ़ते हुए पुराने को समेटते हैं. सुनते हैं ज़िंदगी के चटख रंगों में रंगी, इंसानी रिश्तों के नर्म और नुकीले एहसास की कहानियां, हर इतवार, स्टोरीबॉक्स में. Jamshed Qamar Siddiqui narrates the stories of human relationships every week that ...
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मोहल्ले में आ गया है मंकी मैन. चश्मदीद बताते हैं कि उसकी आंखों की जगह लाल लाइट हैं और मुंह से धुआं निकलता है. वो छत के ऊपर से उड़ते हुए गुज़रता है और लोगों को काट लेता है. मोहल्ले के पार्षद जी बसेसर नाथ ने जनता से वादा किया है कि वो मंकी मैन से निपटने के लिए अपने घर की छत पर सोएंगे. क्या होगा पार्षद जी का - सुनिए 'स्टोरीबॉक्स' में नई कहानी 'मोहल्ले…
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नए रिश्तों की चमक में पुराने रिश्ते मद्धम ज़रूर पड़ जाते हैं लेकिन उनकी याद अक्सर आंखों को भिगो जाती है. मेरी एक उंगली पर बना वो निशान जो पुरानी अंगूठी उतारने से बन गया था, मुझे बार बार मेरे गुज़र चुके शौहर की याद दिला रहा था पर अब वक्त आ गया था कि उसे उतार दिया जाए - सुनिए स्टोरीबॉक्स की कहानी 'ख़ामोश सा अफ़साना' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से…
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शायद मैं अकेली थी जिसे ईद का इंतज़ार नहीं था. इंतज़ार करें भी तो किसका. कुछ लोग आपकी ज़िंदगी से इस तरह जाते हैं कि सब कुछ बेरंग लगने लगता है, खासकर तब जब आपको पता हो कि वो इसी दुनिया के किसी हिस्से में आप के बारे में सोच रहे होंगे - सुनिए स्टोरीबॉक्स में एक खास कहानी 'ईद मुबारक' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से…
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कहते हैं कि आदमी इश्क़ में कुत्ता बन जाता है लेकिन मुझे ऐसा कोई डर नहीं था क्योंकि मैं तो एक कुत्ता ही था। मैं सड़क का आवारा कुत्ता था लेकिन मुझे इश्क़ हो गया था उस आलीशान घर में रहने वाली पिंकी पॉमेरेनियन से जो अपनी मंहगी कार में अपनी मालकिन की गोद में बैठी रहती थी। हमने भी हार नहीं मानी गली के सारे दोस्त यार, मरझिल्ले, कनकटे, दुबले-पतले कुत्ते जम…
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15 साल कैद के बदले दस करोड़ की शर्त लगाने वाला वो अमीर कारोबारी कौन था जिसने सातवीं पास लड़के से लगाई एक अजीब शर्त? वो उस लड़के के कमरे में रिवॉल्वर लेकर क्यों गया था? और क्या वो लड़का अशर, 15 साल क़ैद की वो शर्त पूरी कर पाया? सुनिए स्टोरीबॉक्स में बेहद ख़ास कहानी फांसी या उम्रक़ैद - आजतक रेडियो पर साउन्ड मिक्सिंग: नितिन रावत…
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एक सातवीं पास शख्स से एक अमीर कारोबारी ने लगाई अजीब शर्त जिसमें उसे 15 साल तक एक क़ैद खाने में रहना था जिसके एवज में वो उसे दस करोड़ देने वाला था. क्यों लगाई उसने ऐसी शर्त और कौन जीता इस शर्त को - सुनिए स्टोरीबॉक्स में कहानी 'फांसी या उम्रकैद' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से साउन्ड मिक्सिंग: सचिन द्विवेदीद्वारा Aaj Tak Radio
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सीमा दीदी ऑफिस में अपने पति की खूब तारीफें करती थीं लेकिन उनके हाथ पर हर रोज़ चोट का एक नया निशान दिखता था. वो कहती थीं, "वीकंड पर हम लोग फिल्म देखने गए थे, ये तो मेरा इतना ख़्याल रखते हैं कि पूछो मत बार बार फोन करते हैं" जबकि वो कभी उनको पिक करने दफ़्तर नहीं आए थे. सीमा दीदी दुनिया के सामने अपनी ज़िदगी को झूठी खूबसूरती से सजाए रखना चाहती थीं, जबकि…
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जिस सुबह तीन मोटे चूहों ने हकीम साहब की सदरी दातों से कुतर डाली, उन्होंने तय किया कि अब चाहे जो भी हो जाए लेकिन इन चूहों से छुटकारा पाकर रहेंगे लेकिन उनको पकड़ने के लिए चाहिए एक चूहेदानी. एक तो सदरी कट गयी, ऊपर से पैसा खर्च करके वो खरीदें तो भई ये तो न हो पाएगा. इसके लिए उन्होंने एक ऐसी तरकीब सोची कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, लेकिन ये तरकीब…
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कोई नहीं जानता था कि उस कुत्ते का नाम क्या था और वो वहां कब से आया था? काले रंग का वो कुत्ता मुझे हमेशा ग्राउंड फ्लोर के दरवाज़े की चौखट पर सर टिकाए बैठा रहता था. हर आहट पर उसके कान खड़े हो जाते थे पर अब वो बीमार हो गया था और एक रोज़ उसकी आंखें बंद होने लगीं... और तब मैंने उसे उसके नाम से पुकारा... शायद 8 साल में पहली बार किसी ने उसे उसके नाम से पु…
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कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि सड़क से गुज़रते हुए किसी ऐसे खाली मकान की तरफ देखने पर जो सालों से खाली हो... ऐसा लगता है जैसे उसकी खिड़की से कोई आपको देख रहा है? दो आंखें आपकी तरफ देख रही हैं... क्योंकि उन्हें आपसे कुछ कहना है... वो आपका तब तक पीछा करती हैं जब तक ... आप उन्हें देख पाते हैं और या फिर वो आपको - सुनिए स्टोरीबॉक्स की कहानी 'उस खिड़की मे…
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राजू शर्मा अब दो बच्चों के पिता और एक बीवी के पति हैं. बाहर निकला हुआ पेट है, डबल चिन है. ज़िंदगी की दो दुनी चार में उलझे रहते हैं पर क्या कोई कह सकता है कि ये वही राजू हैं जो कॉलेज के ज़माने में 'राज' हुआ करते थे. स्पोर्ट्स बाइक पर जिधर से निकलते थे लड़कियां आहें भरती थीं... पर फिर उनकी शादी हो गयी. फरवरी की गुलाबी ठंड में वैलेटाइन जब दस्तक देने ल…
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शहर में हर तरफ दंगे फैले हुए थे. सड़कों से जली हुई गाड़ियों का काला धुआं उठ रहा था और बीच बीच में पुलिस की सायरन बजाती गाड़ियां सन्नाटे को चीरती हुई निकल जाती थीं. इसी वक्त मैं एक सड़क पर अपनी कार में बैठा मदद का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि रास्ते में मेरी कार ख़राब हो गयी थी. तभी एक शख्स ने खिड़की पर दस्तक दी और उसके बाद वो हुआ जिसका मुझे बिल्कुल भी…
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आंटी ने मुझसे मना किया था कि मैं उस रास्ते से न आऊं लेकिन क्यों ये वो नहीं बताती थीं. एक बार जब मैंने ज़ोर देकर पूछा तो उन्होंने बताया कि उस रास्ते पर एक उदास रूह भटकती है. मुझे पता चला कि उसी रास्ते पर पहले भी तीन लाशें मिल चुकी हैं जिनकी हालत इतनी ख़राब थी कि उन्हें पहचाना भी नहीं जा सका. मैंने वादा तो कर लिया कि मैं उधर से नहीं जाऊंगा पर एक रोज़…
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पागलखाने की मोटी दीवारों के बीच नादिया ज़ंजीरों से बंधी हुई थी। शहर के अरबपति इत्र कारोबारी शेख अब्दुल हुनैद की इकलौती औलाद, चीख रही थी। दो डॉक्टरों की उंगली चबा लेनी वाली नादिया ने अपने शौहर के टुकड़े टुकड़े क्यों कर दिए और क्यों उसेक पिता ने उसके पति से कहा था - नादिया को नुकीली चीज़ों से दूर रखना। कोहरे की चादर से ढके शहर में कौन कर रहा था एक के…
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“जाओ... कल से चली जाऊंगी रिक्शा करके, कोई ज़रूरत नहीं मुझे ऑफ़िस ड्रॉप करने की” अंजली गुस्से से बोली, “वैसे भी तुम्हारा टुटपुंजिया स्कूटर देखकर हंसते हैं मेरे ऑफिस वाले” मैंने कहा, “हां-हां तो तुम तो शाही घोड़ागाड़ी वाले खानदान की हो न... लोकेश ने तंज़ कसा तो अंजली ज़हरबुझी आवाज़ में बोली, “ख़ानदान की धौंस न दो, सब पता है तुमाए दादा सपरौता गांव में…
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मैं जब उनके घर में फ्रिज रिपेयर करने पहुंचा तो मैंने देखा कि वो बुज़ुर्ग और उनकी पत्नी बड़े से पीली रौशनी वाले घर में अकेले थे। उनके पास बातचीत करने के लिए कुछ नहीं था। शायद उन्हें जो कुछ एक दूसरे से कहना था वो अपने 35 साल के रिश्ते में सब कह चुके थे। जब बुज़ुर्ग चाय बनाने लगे तो मैंने कहा, "क्या आप दोनों इस घर में अकेले ही रहते हैं" बुज़ुर्ग ने मे…
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वो नए साल की रात थी... जब सारा शहर रंगिनियों में खोया था... शहर की सड़कें जश्न के रंग में डूबी हुई थी... लेकिन इसी शहर में शाम से ही पुलिस की गाड़ियां हड़बड़ाए सायरन की आवाज़ बजाते हुए शहर में घूम रही थीं। खबर थी कि इस शहर में एक संदिग्ध शख्स को दाखिल होते हुए देखा गया है जिसके इरादे खतरनाक हैं। वो शख्स कौन था... और क्या चाहता था... जश्न में डूबा ह…
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उस कड़कड़ाती ठंड की सुबह, स्कूल में बतौर टीचर पढ़ाने वाले एक साहब जब स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे कि तभी उन्हें रेडियो पर खबर मिली कि सर्दी की वजह से आज डीएम साहब ने पूरे ज़िले में दसवीं तक के स्कूलों की छुट्टी कर दी है। वो मारे खुशी के उछल पड़े लेकिन तभी उनके दिमाग में आयी एक शरारत... - सुनिए 'छुट्टी का एक दिन' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी…
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पुराने लखनऊ में वो करीब सौ साल पुरानी क्लीनिक थी जिसमें डाकटर साहब एक बड़ी सी मेज़ के पीछे बैठते थे। पीछे अलमारी में सैकड़ों दवाएं सजी रहती थीं जिसे शायद अर्से से खोला नहीं गया था। डॉकटर खान के हाथों में बड़ी शिफ़ा थी। नाक कान गले के डॉक्टर थे और दो खुराक में पुराने से पुराना मर्ज़ ठीक हो जाता था। बस एक दिक्कत थी और वो ये कि 'डाकटर साहब' डांटते बहु…
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ये उन दिनों की बात है कि जब चचा जान अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे और उन दिनों गेट नम्बर दो पर एक पीसीओ होता था। पीसीओ के मालिक रमज़ानी भाई से चचा की दोस्ती थी। दिनभर चाय का दौर चलता रहता। लेकिन उन दिनों फोन पर किसी को बुला देना का बड़ी रवायत थी। फोन आता है कि भई फलां बोल रहे हैं, फलां को बुला दीजिए। दिन भर मोहल्लेदारी में किसी न किसी को बुलाना हो…
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सड़क पर टहलते उस आदमी ने मुझसे कहा कि आप मेरी मदद कर सकते हैं क्या? मैं समझ गया कि ये आदमी अब मुझसे कहेगा कि इसका पर्स कहीं गिर गया है या फिर ये दूसरे शहर का है और पैसे कहीं खो गए हैं या ऐसी ही कोई बात कहेगा और मुझसे पैसे मांगेगा. मैंने भी सोच लिया था कि मैं उसे पैसे बिल्कुल नहीं दूंगा क्योंकि ऐसे ठगों को मैंने खूब देखा है. मैंने कहा, "बताइये क्या …
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सात साल की मेरी बेटी त्रिशा दोपहर से लापता थी। मैंने पूरे शहर के कई चक्कर लगा लिये थे लेकिन अब तक उसका कोई पता नहीं चल पाया था। मैं और मेरे पड़ोसी ज़ैदी साहब थक हार कर घर पहुंचे ही थे कि मेरे घर का फोन बजा। पुलिस स्टेशन से कॉल था। उन्होंने बताया कि भगत सिंह चौक पर लगे सीसीटीवी में त्रिशा को देखा गया है। उसके साथ कोई आदमी है। मैं हड़बड़ाया हुआ पुलिस…
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वो तूफ़ान की एक रात थी। पूरे शहर की बिजली चली गयी थी और इस सिरे से उस सिरे तक अंधेरा ही अंधेरा था। बारिश इतनी तेज़ थी कि लगता था पूरे शहर को बहा ले जाएगी। इसी अंधेरे में चैपल स्ट्रीट के एक दो मंज़िला मकान पर एक लड़की अंधेरे कमरे में अपनी ज़िंदगी की उदासियों, मायूसियों और तल्खियों के साथ छत से लटकते फंदे से झूल जाने की तैयारी में थी। लेकिन उसी वक्त …
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शायर का काम दुनिया बदलना नहीं होता, उनका काम बस दुनिया को ये बताते रहना है कि इस दुनिया को बदलना क्यों ज़रूरी है। वो भी एक शायर था जिसके मन में इंकलाब के शोले थे मगर उसके दामन पर एक अजीब क़िस्म की बदनामी का दाग था जिसे वो हर हाल में मिटाना चाहता था। सुनिए कहानी 'बदनाम सा एक शायर' स्टोरीबॉक्स में.द्वारा Aaj Tak Radio
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किसी की दुआ, किसी और के लिए बद्दुआ बन जाती है। उसे तो यही लगता था कि काश उसने हिबा को पाने की दुआ न मांगी होती तो उसका मंगेतर रोड एक्सीडेंट में मरता नहीं। क्या अब हिबा अपने मंगेतर के पसंदीदा रंग सफेद तो को ही अपनी ज़िंदगी में शामिल रखेगी या कभी कोई और रंग भी उसके हिस्से में आ पाएगा? सुनिए कहानी 'हरा दुपट्टा' स्टोरीबॉक्स में…
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शायर बशीर बद्र ने कहा था कि हर बेवफ़ा शख्स की कुछ मजबूरियां होती हैं लेकिन क्या अपने साथ हुई बेवफ़ाई को इस तरह भुला पाना सबके बस में होता है? क्या सुहानी जो अपने दिल में ज़ख्मों को सजा कर बैठी है कभी उन कड़वी यादों की सरहद को लांघ पाएगी? सुनिए स्टोरीबॉक्स में कहानी 'हम नहीं थे बेवफ़ा' जमशेद कमर सिद्दीक़ी से.…
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क़ासिम पागल नहीं था, वो होशमंद आदमी था पर ये अजीब सी ख़्वाहिश उसके दिल में चिंगारी की तरह भड़क रही थी कि वो जल्दी से किसी को 'उल्लू का पट्ठा' कह दे। लेकिन क्यों? किसलिए? ये नहीं पता था। बस दिल से आवाज़ निकल रही थी कि किसी से कोई ग़लती हो और वो फ़टाक से उसे 'उल्लू का पट्ठा' कह दे। क्या क़ासिम किसी को कह पाया उल्लू का पट्टा? - सुनिए सआदत हसन मंटो की …
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चौधरी साहब जब मरे तो अपने पीछे एक तोता छोड़ गए। तोते का पिंजड़ा घर की ड्योढ़ी पर लटका रहता था और तोता आते-जाते लोगों को गालियां देता रहता। दरअसल गाली-गलौज की आदत तोते ने अपने मरहूम मालिक से सीखी थी। बेवा चौधराइन उसे कभी अमरूद, कभी रोटी का टुकड़ा डाल देती और वो मज़े से खाकर टें-टें करने लगता। एक रोज़ मकान मालिक किराया लेने घर आया - सुनिए मशहूर राइटर…
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हम एक बार बिछड़ चुके थे, दूसरी बार बिछड़ना नहीं चाहते थे। शनाया से जब मैं दूसरी बार मिला तो मेरे हाथ में एक किताब थी 'निर्मल वर्मा' की 'वे दिन' जिसके आखिरी पन्ने पर जो लिखा था अगर वो शनाया पढ़ लेती तो हमारे बीच का वो फासला मिट जाता जो देखने में तो हमारे बीच रखी मेज़ बराबर था, पर असल में उससे कहीं ज़्यादा था - सुनिए स्टोरीबॉक्स में इस हफ्ते की कहानी…
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बेल बजी और दरवाज़ा खुला... लाल लाल सुर्ख आंखे, रंग बादामी, मूछें घनी... वो शख्स पुलिस अफसर तो कहीं से नहीं लग रहे थे पर बल्कि कदकाठी से ऐसे जल्लाद मालूम होते थे जो फांसी का तख्ता न होने पर आदमी को बगल में दबाकर भी मार सकते थे। सुनिए कहानी - 'इश्क़ में कभी कभी' स्टोरीबॉक्स में.द्वारा Aaj Tak Radio
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मेरे अब्बा को पता नहीं किसने बता दिया था हॉस्टल बहुत बुरी जगह होती है। उनको लगता था कि हॉस्टल गुनाहों की एक दोज़ख होती है। हॉस्टल में रहने वाले लड़के नशे में चूर सड़कों पर मिलते हैं या जुए खानों में। इसलिए लाहौर में हमारे एक दूर के मामू ढूंढे गए। और फर्ज़ी क़िस्सों से ये साबित किया गया कि जब मैं बच्चा था तो वो मुझे बहुत चाहते थे। मामू के बारे में म…
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शहर में दंगे के बाद कर्फ्यू लगा हुआ था। पुलिस की गाड़ियां गश्त लगा रही थीं। इसी दौरान वो आदमी छुपता हुआ एक बड़े से कूड़ेदान में छुप गया। पर वहां एक आदमी पहले से मौजूद था। वो भी अपनी जान बचाने के लिए छुपा हुआ था। एक ने दूसरे से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है" दूसरे ने कहा, "पहले तुम बताओ" दोनों की आंखों में एक गहरा अविश्वास था। कुछ देर के बाद एक ने दूस…
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ये सड़क जो कचहरी से होते हुए लॉ कॉलेज के आखिरी दरवाज़े तक जाती है मैं इस पर बीते नौ सालों से रोज़ाना दफ़्तर जाता हूं। इस सड़क ने क्या क्या देखा है, क्या क्या इसे याद है लेकिन ये चुप रहती है उन बुज़ुर्गों की तरह जिन्होंने दुनिया को बदलते हुए देखा है पर वो अपने तजुर्बों को लिए ख़ामोशी के साथ बुझती हुई आंखों से बदलते वक्त को देखते रहते हैं। - सुनिए स्…
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मेरी कार से उस साइकिल सवार की टक्कर हो गयी थी। ग़लती तो मेरी ही थी लेकिन दिल्ली की सड़क पर एक्सीडेंट के बाद बचाव का तरीका यही है कि गुस्सा करते हुए बाहर निकलो, ताकि लगे ग़लती दूसरे की है - सुनिए भीष्म साहनी की कहानी 'त्रास' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से.द्वारा Aaj Tak Radio
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लड़के वाले आ चुके थे। बगल वाले कमरे से उनकी बातचीत की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मां ने मुझे उस दिन बैंगनी साड़ी पहनाई थी क्योंकि उन्हें लगता था कि उसमें मेरा रंग कम सांवला लगता है। कमरे में ले जाते हुए मम्मी ने मेरे कंधों को ऐसे थामा जैसे मैं हमेशा सहारे से चलती हूं। कमरे में दाखिल होती ही तमाम नज़रें मुझ पर घिर गयीं जैसे किसी बाज़ार में सामान पर गड़ …
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पूरे घर को बदल दिया गया था। पापा ने मेज़ पर बिछे मेज़पोश से लेकर पर्दे तक, सब नए मंगवाए थे। दीवारों पर लगी धुंधली तस्वीरों को साफ किया। चाय के लिए पड़ोस से मंहगा वाला टी सेट मांग कर लाए। शहर की सबसे अच्छी बेकरी शॉप से बिस्किट और नमकीन खरीदे। घर की कालीनें बालकनी से लटका कर तीन बार झाड़ी गयी थीं। आने वाले खास मेहमानों को घर बिल्कुल नया लग रहा था पर …
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मस्जिद की दीवार से लगी हुई बैटरी रिपेयर की दुकान चलाने वाले चुन्ने खान को पता चला कि एक लड़की पर आ गया है किर्गिस्तान का जिन्न और उस जिन को उतारने के लिए बुलाया गया है उनके दुश्मन हसीन अहमद को। अब क्या करेंगे चुन्ने खान... सुनिए स्टोरीबॉक्स में नई कहानी 'चुन्नू खान का जिन्न' जमशेद कमर सिद्दीक़ी से.द्वारा Aaj Tak Radio
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पाखी की उम्र बारह साल थी। उसकी ज़िंदगी के रंग अभी कच्चे थे। वो रात के वक्त छत पर लेटे हुए चुंधियाई आंखों से आसमान की तरफ चमकते तारों को हैरानी से देखती थी और सोचती थी इन्हीं तारों के बीच से उसकी मां उसे देख रही होंगी। वही मां जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में उसके लिए नीली जुराबें बनाई थीं - सुनिए 'नीली जुराबें' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर स…
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वो कहते हैं कि प्रेम पत्रों का ज़माना चला गया, अब आजकल तो इधर मैसेज टाइप किया उधर भेज दिया। लेकिन सूचना की इस आंधी में प्रेम पत्र फिर भी प्रेम पत्र ही रहेंगे क्योंकि भेजे हुए सेंदेश पढ़ कर ऊपर सरक जाते हैं लेकिन प्रेम पत्र कई कई बार पढ़ा जाता है। सुनिए हिंद पॉकेट बुक्स की किताब 'यारेख' से चुने हुए दो ख़त, जिन्हें लिखा है कवि आलोक धन्वा और आकांक्षा …
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शकूर भाई हमारे पड़ोसी, बहुत नेक आदमी थे। शहर में बर्फ के तीन कारखाने थे। निहायत शरीफ आदमी लेकिन एक सुबह अचानक ख़बर आई कि नहीं रहे। हम भी पहुंच गए उनके परिवार की मातमपुर्सी करने लेकिन ये फैसला हमारी ज़िंदगी का सबसे बुरा फैसला साबित हुआ। सुनिए स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से, कहानी 'शकूर भाई नहीं रहे'.…
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गर्वित और वैष्णवी की शादी को दो साल भी नहीं हुए थे कि वैष्णवी को न जाने क्यों लगने लगा कि गर्वित उसे अब उस तरह नहीं चाहता जैसे शादी के पहले चाहता था। क्या हर रिश्ते का अंजाम यही होता है? क्यों वक्त की धूप में इश्क़ के चटक रंग खुरदुरे हो जाते हैं? मिस्र जाने की ख्वाहिश पाले वैष्णवी के सपने क्या पूरे हो पाएंगे? सुनिए कहानी - 'हम रहे न हम' स्टोरीबॉक्स…
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तो.. तुम्हारी बीवी कैसी है?" ज़ेहरा ने शादमान ने पूछा तो उसने उसे सच नहीं बताया कि उसकी पत्नी की मौत हो चुकी है, बस इतनी ही कहा, "ठीक है वो... तुम बताओ तुम्हारे शौहर कैसे हैं?" ज़ेहरा भी शादमान को ये बताकर उदास नहीं करना चाहती थी कि उसके शौहर से उसकी तलाक हो चुकी है। बोला, "ठीक हैं वो" पंद्रह साल बाद मिले शादमान और ज़ेहरा अपने अपने हिस्से का झूठ छु…
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मेरे बड़े भाई साहब उम्र में मुझसे पांच साल बड़े थे लेकिन सिर्फ तीन क्लास आगे थे। वो दिन भर पढ़ते रहते थे और कहीं मुझे सड़क पर लड़कों के साथ खेलते देख लिया तो डांट लगाते थे। कहते "इन बाज़ारी लड़कों के साथ खेलते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें? मुझे देखो मैं कितना पढ़ता हूं, मुझसे कुछ सीखते क्यों नहीं तुम?" कई बार तो ये भी कह चुके थे कि अगर पढ़ाई में मन नह…
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चार बाल काटने वाले हजाम मिलकर एक हेयर कटिंग सलून चलाते थे। दुकान बढ़िया चलती थी। कस्टरमर्स की भीड़ लगी रहती थी। एक शख्स उनकी दुकान पर एक शख्स आया। कपड़े मैले, बाल बिखरे हुए। बोला, "मुझे बस थोड़ी सी जगह दे दीजिए, यहीं पड़ा रहूंगा और दुकान को झाड़ पोंछ दिया करूंगा। मैं खाना भी बना लेता हूं। मुझे पैसा नहीं चाहिए" उन लोगों ने उसे काम पर रख लिया पर धीरे…
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आलाँ गरीब थी, उसके वालिद गाँव में जूता बनाते-बनाते मर गए थे। अब कोई नहीं था जो उसके सर पर हाथ रखता। पर वो खूबसूरत थी। लोगों के घरों में छोटे-मोटे काम करती थी। वो रात जिसकी अगली सुबह मुझे वापस निकलना था। उसने मुझे एक कुर्ता दिया, जो उसने अपनी मेहनत की कमाई से मेरे लिए बनाया था। बोली, "आपके कुर्ते का आखिरी बटन टाकना था। इस कुर्ते के लिए आपके बैग में …
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मैं बम्बई के फ़ारस रोड की एक तवायफ़ हूं। मैंने एक हिंदू और एक मुस्लिम लड़की को खरीदा है जो मेरे साथ मेरी ही कोठरी में रहती हैं। मैं उनके लिए ये खत नेहरू और जिन्ना को लिख रही हूं" - सुनिए कृष्ण चंदर की लिखी कहानी 'एक तवायफ़ का ख़त' 'स्टोरीबॉक्स' में जमशेद कमर सिद्दीक़ी से.द्वारा Aaj Tak Radio
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"बेगम अपने मिट्ठू बेटे को दिन रात सबक रटाया करती थीं लेकिन वो ज़हन से कुछ गधे मालूम होते थे, कुछ न सीख सके। बल्कि सुनते-सुनते मुझे याद हो गया। एक रात बिल्ली ने पिंजड़े को गिराया और मिट्टू मियां को मुंह में दबा लिया। वो चीखे तो मैं और बेगम डंडा लेकर भागे। बिल्ली ने उन्हें छोड़ तो दिया पर लगा कि आज मिट्ठू मियां गए काम से लेकिन तभी क्या देखते हैं कि म…
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ट्रेन खिसकना शुरु हो गयी थी। मेरी बीवी रौशन आरा ने कहा, "अपना ख्याल रखिएगा, फोन करते रहिएगा" मैंने कहा "हां" मेरा मन भारी हो रहा था। ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली हमने एक दूसरे की आंखों में देखा और फिर वो धड़धड़ाती ट्रेन में चली गयी। मैं भारी कदमों से स्टेशन के बाहर आया घर की तरफ चलने लगा पर तभी अंदर से एक आवाज़ आई। जब कहीं भी जा सकते हैं तो घर ही क्यों …
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उनके सीज़र से इतना प्यार था कि अगर कोई दौड़ा-दौड़ा उनके घर आए और कहे कि फायर ब्रिगेड को फोन करना है तो भी वो पहले उसे अपने प्यारे कुत्ते का एल्बम दिखाएंगे उसके बाद ही फोन छूने देंगे। सुनिए मुश्ताक अहमद युसूफ़ी की किताब ज़रगुज़िश्त से एक मज़मून स्टोरीबॉक्स मे. साउंड मिक्स - अमृत रज़्जीद्वारा Aaj Tak Radio
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मोहल्ले के झगड़े की आवाज़ सुनकर चचा नीचे आए तो देखा कि मजमा लगा है। बोले, "अरे भई क्या मामला हो गया" एक साहब ने कहा, "अरे कुछ नहीं, मामला सुलट गया है" चचा बोले, "मगर फिर भी, ग़लती किसकी थी, ज़्यादती किसने की, कुछ तो बताइये" बात उनको फिर बताई गयी और इसी बताने-बताने में गली में फिर से लाठी-डंडे चलने लगे। सुनिए इम्तियाज़ अली ताज की कहानी - चचा छक्कन स…
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