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विभिन्न सामाजिक और समसामयिक विषयों पर लिखे मेरे व्यंग्यों और लेखों का संकलन Collection of my satires and articles, written on various social and contemporary issues
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सरसों, बौरों,🌾 कोयल, भंवरों,🐝 तुम बिल के दायरे में भी हो।📜 हमारे ध्यान के शिकंजे में भी।💢
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लोग पढ़ने को तैयार बैठे हैं📖 समय ही समय है उनके पास🕰️ लिखने भर की देर है✍️ तुम कुछ लिखो तो लेखकों 📝
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पृथ्वी को लपेटा था तुमने 🌍 किसी ने तुम्हें लपेट दिया 👥 सांस लेना प्लास्टिक में 👹 कैसा होता है, पता तो चला 😩
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बिना उसके सब रुक जाता है 🚫 दिल की धड़कन भी 💓 मानव शरीर की ये अनिवार्यता📱 अब आन्तरिक होनी चाहिए 🤳
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बेकार लोग बेकार दिखते हैं 🥺 हमेशा बेकार कहलाते हैं ☹️ बेकार ही समझे जाते हैं 😬 और बेकार क़रार दिये जाते हैं #️⃣
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बचत पैसा बचाने से नहीं💰 खर्च करने से होती है🎊 जितना खर्च उतनी छूट💬 ज्यादा छूट ज्यादा बचत💸
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धन💰 चाहिए तो लक्ष्मी माता ज्ञान 📖 चाहिए तो सरस्वती शक्ति 💪चाहिए तो मां दुर्गा कुछ भी चाहिए तो माता ही याद आती हैं🙏
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मुखौटा है असली चेहरा, मोटी चमड़ी पहचान। हमें चाहिए अपनी मस्ती, बाकी सबसे हम अनजान।
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पानी की क्या परवाह करना, वो तो फैक्ट्रियों में बना लेंगे। हमें सिर्फ बच्चों के आर्थिक भविष्य, और भौतिक सुखों की चिंता करनी चाहिए।
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उदासी जीवन रस सोख लेती है। दिल पर बुरा असर डालती है। मुद्दे असली है या नहीं, हमें क्या फर्क पड़ता है?
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गलती करके परेशान न हों.. मनुष्य है ही गलतियों का पुतला.. सीख,सबक, सुधार के सिवाय.. कुछ और भी बेहतर हो सकता है।
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खाओ पीओ और मौज करो...या फिर.... सौंपदो अपनी मेहनतकश जमाओं को उन्हें, जो आपके धन से खा पी कर मज़ा करें।
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देर नहीं, तो अन्धेर कैसे हो? अन्धेर नहीं, तो आश्वासन कैसे हो? आश्वासन नहीं, तो भाषण कैसे हो? भाषण नहीं, तो शासन कैसे हो, प्रशासन कैसे हो?
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वीरता नहीं दिखाना कायरों का काम है,जो हम कतई नहीं हैं। सीमा पर नहीं भेजोगे तो गली - मुहल्ले - शहर, जहां हम हैं उसी को रणक्षेत्र बना बहादुरी दिखा देंगे। खून है तो खौलेगा ही।
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बुद्धि ने उसे बेवकूफ बनाया, उसने कायनात को बेवकूफ बनाया। सबको जीतने के चक्कर में, स्वयं से हारता चला गया। सुखी होने के लिए खूब दुःख दिये खुद को, इतने दुःख पा कर कैसे सुखी हो सकता था।
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दिमाग का दही कर दिया इन विज्ञापन बना कर माल बेचने वालों ने। होने और दिखाने में जमीन आसमान से कम का अंतर नहीं होता। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की गर्दन इनके शिकंजे में है और उससे चिपके रहने के कारण हमारी भी। ये बेवकूफ समझ कर बेवकूफ बनाते हैं या बेवकूफ बना कर बेवकूफ समझते हैं।
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समझदारी और परिपक्वता नहीं,चमड़ी की रंगत ही,चरित्र और बुद्धि की श्रेष्ठता निर्धारित करती है। गोरे दूध के धुले हैं और काले ..... हम भारतीयों का रंगभेद दुनिया में सबसे उम्दा किस्म का है, ये दूसरों के लिए प्रर्दशन में विश्वास नहीं करता। ये यकीन करता है अपने परिवार, समाज की सांवली/काली बेटियों पर प्रहार में।…
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ये हो क्या रहा है? नेगेटिव रहने के लिए सोच को पाॅजिटिव होना जरूरी बताया जा रहा है। पाॅजिटिव आ जाने पर नेगेटिव करने की कोशिश की जा रही है। नकारात्मक समझदार माना जा रहा है, और सकारात्मक बेचारे पर ढ़ेरों प्रश्न दागे जा रहे हैं।
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वायरस शब्द ने तो हाल ही में प्रसिद्धि पाई है जबकि वायरल शब्द बहुत पहले से चर्चित रहा है। सन्देश कैसा भी हो, वायरल करने के पुनीत कार्य में लगे वारियर्स का उचित सम्मान होना जरूरी है। ग्रुप के सभी सदस्य अपने स्तर पर कितना परिश्रम करते हैं तब कहीं जाकर दिमाग का एनकाऊंटर हो पाता है और आशातीत परिणाम आ पाते हैं।…
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बाजार हथियाने के एक से एक हथकंडे मुझे आते हैं। दूसरे देशों के उत्पादों ही नहीं अर्थव्यवस्था को पटखनी देकर मैं यहां तक पहुंचा हूं। तुमसे कमाए को तुमसे कमाने में लगा देने का तरीका मुझे पता है और तुम्हारे खिलाफ लगाना भी।
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मेरे पैर दो और तुम्हारे चार। कहने को तो फर्क सिर्फ दो पैरों का है। लेकिन कपाल के भीतर का तन्त्रिका- तन्त्र जिसे बुद्धि कहते हैं वो खास है। मैंने अपनी विलक्षण बुद्धि का उपयोग ऐसा किया कि तुम चौपायों को जानवर बना दिया। मै नहीं होता तो अपना लम्बा जीवन तुम्हें पूरा बिताना पड़ता। तुम्हें जीव-बन्धन से मुक्ति दिलाने के लिए ही मैं रात- दिन लगा रहता हूं।…
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अपनी समझदार संवेदनाओं को संभाल कर रखिएगा। पीड़ित व्यक्ति के जिन्दा रहते ही खर्च कर दी तो उसके मरने के बाद क्या करेंगे? कहां से लाएंगे Social Media पर सार्वजनिक करने के लिए शहद में डूबे अच्छे - अच्छे शब्द और वाक्य विन्यास? कैसे दिखाएंगे अपना ज़िम्मेदार नागरिक होना? कैसे प्रर्दशित करेंगे कर्त्तव्य परायण परिवार, समाज और देश होना?…
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ये हमारी भलमनसाहत है, कि हमने लोगों की तकलीफें दूर करने का काम चुना है। सरकार सभी की परेशानियों का निराकरण नहीं कर पा रही थी। उसने हमसे हाथ बंटाने के लिए कहा तो हम जुट गए तन-मन-धन से।
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दो - ढाई महीने तो लगे, आखिरकार हम कोरोना से negotiation करने में सफल रहे। वह सिर्फ और सिर्फ रात को सक्रिय होने के लिए मान गया। इसलिए दिन को lockup से बाहर कर दिया, जबकि रात अभी कुछ और दिन- महीने वहीं रहेगी।
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