इस खास सेगमेंट में कविता के माध्यम हम गंभीर बातों को आप तक पहुंचाते है.
अनहद कृति विशुद्ध रूप से साहित्यिक पूर्णतयः अव्यवसायिक, साहित्य, कला एवं सामाजिक सरोकारों की त्रैमासिक इ-पत्रिका है। दिल को छू लेने वाली साहित्यिक संरचना, भारतीय संस्कृति की मूलभूत अवधारणा में निहित समन्वय-सामंजस्य एवं मानवतावादी दृष्टि को उजागर करती, हमारी टेढ़ी राजनीति के सीधे सरल नाम से कुछ दूर हो कर, आशा से परिपूर्ण, लिखी गयी रचनाओं (कविता, कहानी, लेख, व्यंग्य) का इसमें सहज स्वागत है।
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सुरेन्द्र शर्मा - कविता - मैंने अपना गांव लिखा
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https://www.anhadkriti.com/rachnakar.php?k=surendra-sharmaद्वारा अनहद कृति
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पुष्प राज चसवाल - गीत - मन क्यों गाए रे
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https://www.anhadkriti.com/rachnakar.php?k=pushpraj-chaswalद्वारा अनहद कृति
https://www.anhadkriti.com/rachnakar.php?k=shri-krishna-sainiद्वारा अनहद कृति
सुनिए परसाई के रचना संग्रह निठल्ले की डायरी का एक अंशद्वारा HW News Network
प्रधानसेवक के झकाझक भाषणों से देश की सारी समस्याएं हल हो जाने वाली हैं और कुछ करने की ज़रुरत ही नहीं है लोग मस्त रहें पकोड़े छानेंद्वारा HW News Network
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लौटती बारात बहुत ख़तरनाक होती है भैया
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सुनिए परसाई का व्यंग्यद्वारा HW News Network
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हम तो प्यार करते रहेंगे, तुम्हारी ऐसी की तैसी
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आप चाहें तो प्रेम कर लीजिये, आप चाहें तो लव कर लीजिये प्रेम न भाषा देखता है न देशी-विदेशी देखता है, प्रेम सरहदें नहीं देखता, प्रेम धर्म नहीं देखता, प्रेम में सियासत घुसेड़ने वालों हम तप प्रेम करते रहेंगे तुम्हारी ऐसी की तैसी.द्वारा HW News Network
इब्ने इंशा की किताब 'उर्दू की आख़िरी किताब' के कुछ अंशद्वारा HW News Network
हरियाणा के सुप्रसिद्ध हास्य रचनाकार अरुण जैमिनी की मारक रचना सुनियेद्वारा HW News Network
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अजीब आदमी था वो मोहब्बतों की बात करता था
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कई बार कुछ बातों का मतलब सिर्फ़ उतना ही नहीं होता जितना कि फ़ौरी तौर पर दिख रहा होता है कई बार कुछ बातों के मानी बहुत विशाल होते हैं यही खासियत है जावेद साहब की कलम में.द्वारा HW News Network
सियासत के खेल से पर्दा उठती जावेद साहब की ये रचना सुनिए.द्वारा HW News Network
सुनिए जावेद अख्तर साहब की बेहतरीन रचनाएंद्वारा HW News Network
तुमने बहुत सहा है / तुमने जाना है किस तरह स्त्री का कलेजा पत्थर हो जाता है / किस तरह स्त्री पत्थर हो जाती है / महल अटारी में सजाने लायक / मैं एक हाड़ मांस की स्त्री नहीं हो पाउंगी पत्थर / न ही माल असबाब / तुम डोली सजा देना / उसमें काठ की एक पुतली रख देना / उसे चूनर भी ओढ़ा देना / और उनसे कहना लो ये रही तुम्हारी दुल्हन / मैं तो जोगी के साथ जाउंगी माँ…
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सिर्फ़ अच्छा अच्छा याद रखने से काम नहीं चलेगा
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साल 2017 ख़त्म हो रहा है लोग आंकलन करेंगे कि क्या पाया क्या खोया लेकिन इस आंकलन में हम अक्सर अच्छा अच्छा याद करते रह जाते हैं जो बुरा और ग़लत हुआ उससे सबक लेना भूल जाते हैं.द्वारा HW News Network
जाते साल को विदा है और आते साल का स्वागत हैद्वारा HW News Network
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महादेवी वर्मा - साहित्य स्तम्भ - जाग तुझ को दूर जाना
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अनिल पुरोहित - कविता - सुलगती जिन्दगी...
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डॉ. प्रणव भारती - कविता - हम नाटक में फँसते रहते
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