HINDI KAVITA, STORY, POEM, JOKES
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Here I recite Hindi poems written by me and some of my favorite, all-time classics. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित रचनाएँ और अपने प्रिय कवियों की कालजयी कवितायेँ प्रस्तुत कर रहा हूँ Three times "Author Of The Month" on StoryMirror in 2021. Open to collaborating with music composers and singers. Write to me on HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hindi #Poetry #Shayri #Kavita #HindiPoetry #Ghazal
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आओ जज़्बातों को लफ्ज़ देने की कोशिश करें MANKAHI ALSO AVAILABLE ON YOU TUBE KINDLY SUBSCRIBE https://youtube.com/c/MANKAHIGURTEJSINGHOFFICIAL
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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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It's hindi poem(kavita). Title - Haari nahi hun.
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This is all about my compositions recited by me.
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Are you fascinated by the stories and mythology of ancient India? Do you want to learn more about the epic tale of Ramayana and its relevance to modern-day life? Then you should check out Ramayan Aaj Ke Liye, the ultimate podcast on Indian mythology and culture. Hosted by Kavita Paudwal, this podcast offers a deep dive into the world of Ramayana and its characters, themes, and teachings.
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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अभुवाता समाज | रूपम मिश्र वे शीशे-बासे से नहीं हरी कनई मिट्टी से बनी थीं जिसमें इतनी नमी थी कि एक सत्ता की चाक पर मनचाहा ढाल दिया जाता नाचती हुई एक स्त्री को अचानक कुछ याद आ जाता है सहम कर खड़ी हो जाती है माथे के पल््लू को और खींच कर दर्द को दबा कर एक भरभराई-सी हँसी हँसती है हमार मालिक बहुत रिसिकट हैं हमरा नाचना उनका नाहीं नीक लगता साथ पुराती दूसर…
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Hum Auratein hain Mukhautey Nahi | Anupam Singh
2:45
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हम औरतें हैं मुखौटे नहीं - अनुपम सिंह वह अपनी भट्ठियों में मुखौटे तैयार करता है उन पर लेबुल लगाकर सूखने के लिए लग्गियों के सहारे टाँग देता है सूखने के बाद उनको अनेक रासायनिक क्रियाओं से गुज़ारता है कभी सबसे तेज़ तापमान पर रखता है तो कभी सबसे कम ऐसा लगातार करने से अप्रत्याशित चमक आ जाती है उनमें विस्फोटक हथियारों से लैस उनके सिपाही घर-घर घूम रहे हैं क…
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क्रांतिपुरुष | चित्रा पँवार कल रात सपने के बगीचे में हवाखोरी करते भगत सिंह से मुलाकात हो गई मैंने पूछा शहीव-ए-आज़म! तुम क्रांतिकारी ना होते तो क्या होते? वह ठहाका मारकर हँसे फिर भी क्रांतिकारी ही होता पगली ! खेतों में धान त्रगाता हल चलाता और भूख के विरुद्ध कर देता क्रांति मगर सोचो अगर खेत भी ना होते तुम्हारे पास! तब क्या करते!! फिर,,ऐसे में कल्रम…
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Sheetleheri Mein Ek Boodhe Aadmi Ki Prathna | Kedarnath Singh
2:50
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शीतलहरी में एक बूढ़े आदमी की प्रार्थना | केदारनाथ सिंह ईश्वर इस भयानक ठंड में जहाँ पेड़ के पत्ते तक ठिठुर रहे हैं मुझे कहाँ मिलेगा वह कोयला जिस पर इन्सानियत का खून गरमाया जाता है एक ज़िन्दा लाल दहकता हुआ कोयला मेरी अँगीठी के लिए बेहद ज़रूरी और हमदर्द कोयला मुझे कहाँ मिलेगा इस ठंड से अकड़े हुए शहर में जहाँ वह हमेशा छिपाकर रखा जाता है घर के पिछवाड़े या …
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Tum Apne Rang Me Rang Lo To Holi Hai | Harivansh Rai Bachchan
1:35
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तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है | हरिवंशराय बच्चन तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है। देखी मैंने बहुत दिनों तक दुनिया की रंगीनी, किंतु रही कोरी की कोरी मेरी चादर झीनी, तन के तार छूए बहुतों ने मन का तार न भीगा, तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है। अंबर ने ओढ़ी है तन पर चादर नीली-नीली, हरित धरित्री के आँगन में सरसों पीली-पीली, सिंदूरी मंजरियों से ह…
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धरती का शाप | अनुपम सिंह मौत की ओर अग्रसर है धरती मुड़-मुड़कर देख रही है पीछे की ओर उसकी आँखें खोज रही हैं आदिम पुरखिनों के पद-चिह्न उन सखियों को खोज रही हैं जिनके साथ बड़ी होती फैली थी गंगा के मैदानों तक उसकी यादों में घुल रही हैं मलयानिल की हवाएँ जबकि नदियाँ मृत पड़ी हैं उसकी राहों में नदियों के कंकाल बटोरती मौत की ओर अग्रसर है धरती वह ले जा रही …
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पीत कमल | नन्दकिशोर आचार्य जल ही जल की नीली-दर-नीली गहराई के नीचे जमे हुए काले दलदल ही दलदल में अपनी ही पूँछ पर सर टिका कर सो रहा था वह : उचटा अचानक भूला हुआ कुछ कहीं जैसे सुगबुगाने लगे। कुछ देर उन्मन, याद करता-सा उसी बिसरी राग की धुन जल के दबावों में कहीं घुटती हुई एक-एक कर लगीं खुलने सलवटें सारी तरंग-सी व्याप गयी जल में : अपनी ही पूँछ के बल खड़ा …
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उनका जीवन | अनुपम सिंह ख़ाली कनस्तर-सा उदास दिन बीतता ही नहीं रात रज़ाइयों में चीख़ती हैं कपास की आत्माएँ जैसे रुइयाँ नहीं आत्माएँ ही धुनी गई हों गहरी होती बिवाइयों में झलझलाता है नर्म ख़ून किसी चूल्हे की गर्म महक लाई है पछुआ बयार अंतड़ियों की बेजान ध्वनियों से फूट जाती है नकसीर भूख और भोजन के बीच ही वे लड़ रहे हैं लड़ाई बाइस्कोप की रील-सा बस! यहीं उलझ गय…
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Lekar Seedha Naara | Shamsher Bahadur Singh
1:50
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लेकर सीधा नारा | शमशेर बहादुर सिंह लेकर सीधा नारा कौन पुकारा अंतिम आशाओं की संध्याओं से? पलकें डूबी ही-सी थीं— पर अभी नहीं; कोई सुनता-सा था मुझे कहीं; फिर किसने यह, सातों सागर के पार एकाकीपन से ही, मानो—हार, एकाकी उठ मुझे पुकारा कई बार? मैं समाज तो नहीं; न मैं कुल जीवन; कण-समूह में हूँ मैं केवल एक कण। —कौन सहारा! मेरा कौन सहारा!…
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Azadi Abhi Adhoori Hai | Sheoraj Singh Bechain
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आज़ादी अभी अधूरी है- सच है यह बात समझ प्यारे। कुछ सुविधाओं के टुकड़े खा- मत नौ-नौ बाँस उछल प्यारे। गोरे गैरों का जुल्म था कल अब सितम हमारे अपनों का ये कुछ भी कहें, पर देश बना नहीं भीमराव के सपनों का। एक डाल ही क्यों? एक फूल ही क्यों? सारा उद्यान बदल प्यारे। आज़ादी अभी अधूरी है। सच है ये बात समझ प्यारे। है जिसका लहू मयखाने में वो वसर आज तसना-लव है …
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मैंने देखा | ज्योति पांडेय मैंने देखा, वाष्प को मेघ बनते और मेघ को जल। पैरों में पृथ्वी पहन उल्काओं की सँकरी गलियों में जाते उसे मैंने देखा। वह नाप रहा था जीवन की परिधि। और माप रहा था मृत्यु का विस्तार; मैंने देखा। वह ताक रहा था आकाश और तकते-तकते अनंत हुआ जा रहा था। वह लाँघ रहा था समुद्र और लाँघते-लाँघते जल हुआ जा रहा था। वह ताप रहा था आग और तपते-त…
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Kasautiyan | Vishwanath Prasad Tiwari
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कसौटियाँ | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 'जो एक का सत्य है वही सबका सत्य है' —यह बात बहुत सीधी थी लेकिन वे चीजों पर उलटा विचार करते थे उन्होंने सबके लिए एक आचार—संहिता तैयार की थी लेकिन खुद अपने विशेषाधिकार में जीते थे उनकी कसौटियाँ झाँवें की तरह खुरदरी थीं जिसे वे आदमियों की त्वचा पर रगड़ते थे और इस तरह कसते थे आदमी को आदमी बड़ा था और कसौटियाँ छोटी इस पर…
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ज़िलाधीश | आलोक धन्वा तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो। तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो! एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं हुआ था! तुम क्या सोचते हो संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को वैसा ही रहने दिया जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी? यह जो आदमी मेज़ की दूसरी ओर सुन रह है तुम्हें कितने करीब और ध्यान से यह राजा …
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तिरोहित सितार | दामोदर खड़से खूँखार समय के घनघोर जंगल में बहरा एकांत जब देख नहीं पाता अपना आसपास... तब अगली पीढ़ी की देहरी पर कोई तिरोहित सितार अपने विसर्जन की कातर याचना करती है यादों पर चढ़ी धूल हटाने वाला कोई भी तो नहीं होता तब जब आँसू दस्तक देते हैं– बेहिसाब! मकान छोटा होता जाता है और सितार ढकेल दी जाती है कूड़े में आदमी की तरह... सितार के अंतर …
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सीख | बलराज साहनी वैज्ञानिकों का कथन है कि डरे हुए मनुष्य के शरीर से एक प्रकार की बास निकलती है जिसे कुत्ता झट सूँघ लेता है और काटने दौड़ता है। और अगर आदमी न डरे तो कुत्ता मुँह खोल मुस्कुराता, पूँछ हिलाता मित्र ही नहीं, मनुष्य का ग़ुलाम भी बन जाता है। तो प्यारे! अगर जीने की चाह है, जीवन को बदलने की चाह है तो इस तत्व से लाभ उठाएँ, इस मंत्र की महिमा गा…
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कुछ बन जाते हैं | उदय प्रकाश कुछ बन जाते हैं तुम मिसरी की डली बन जाओ मैं दूध बन जाता हूँ तुम मुझमें घुल जाओ। तुम ढाई साल की बच्ची बन जाओ मैं मिसरी घुला दूध हूँ मीठा मुझे एक साँस में पी जाओ। अब मैं मैदान हूँ तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ। मुझमें दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ। मेरे कंधों पर चढ़ो और फिसलो । मैं सेमल का पेड़ हूँ मुझे ज़ोर-ज़ोर से झकझोरो और मेर…
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Surya Dhalta Hi Nahi | Ramdarash Mishra
2:14
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सूर्य ढलता ही नहीं | रामदरश मिश्र | आरती जैन चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं है दोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है! आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों से बंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों से हैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तर चिड़चिड़ाकर कह रहे- ‘कम्बख़्त, जलता ही नहीं है!’ बदलियाँ घिरतीं, हवाएँ काँपती, रोता अंधेरा लोग गिरत…
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Tedhi Kamar KI Auratein | Aishwarya Vijay Amrit Raj
4:26
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टेढ़ी कमर की औरतें | ऐश्वर्य विजय अमृत राज छः-सात साल की लड़कियाँ छोटे भाइयों/बड़े भाई के बच्चे के साथ/ सोलह साल की सालभर पुरानी कन्याएँ अपने बच्चे/जेठानी के बच्चे के साथ चालीस-साठ की दादी/नानी कमर एक तरफ निकालकर बच्चे को लटकाए कुल्हे की हड्डी से, हो जाती हैं पेड़ के किसी टेढ़े तने सी तिरछी, और ठोंस, किसी पुरानी सभ्यता की मूर्ति सी, जो टिकी-बची हो हर मौ…
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क़िले में बच्चे | नरेश सक्सेना क़िले के फाटक खुले पड़े हैं और पहरेदार गायब ड्योढ़ी में चमगादड़ें दीवाने ख़ास में जाले और हरम बेपर्दा हैं सुल्तान दौड़ो! आज किले में भर गए हैं बच्चे उन्होंने तुम्हारी बुर्जियों, मेहराबों, खंभों और कंगूरों पर लिख दिए हैं अपने नाम कक्षाएँ और स्कूल के पते अब वे पूछ रहे हैं सवाल कि सुल्तान के घर का इतना बड़ा दरवाज़ा उसकी इतन…
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चुनाव की चोट | काका हाथरसी हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट? वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई। उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥ कह ‘काका’ कवि, बर्राते हैं सोते सोते। रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते रोते॥द्वारा Nayi Dhara Radio
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Jo Kuch Dekha-Suna, Samjha, Likh Diya | Nirmala Putul
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जो कुछ देखा-सुना, समझा, लिख दिया | निर्मला पुतुल बिना किसी लाग-लपेट के तुम्हें अच्छा लगे, ना लगे, तुम जानो चिकनी-चुपड़ी भाषा की उम्मीद न करो मुझसे जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते मेरी भाषा भी रूखड़ी हो गई है मैं नहीं जानती कविता की परिभाषा छंद, लय, तुक का कोई ज्ञान नहीं मुझे और न ही शब्दों और भाषाओं में है मेरी पकड़ घर-गृहस्थी सँभालते लड़ते अपने …
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समापन है शिशिर का अब, मधुर मधुमास आया है। सभी आनंद में डूबे, अपरिमित हर्ष छाया है॥ सुनहरे सूत को लेकर, बुना किरणों ने जो कम्बल। ठिठुरते चाँद तारों को, दिवाकर ने उढ़ाया है॥ ... ... समर्पित काव्य चरणों में, बनाई छंद की माला। नमन है वागदेवी को, सुमन ‘अवि’ ने चढ़ाया है॥ गीतकार - विवेक अग्रवाल "अवि" स्वर - श्रेय तिवारी --------------- Full Ghazal is avai…
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Jo Mere Ghar Kabhi Nahi Ayenge | Vinod Kumar Shukla
1:55
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जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे | विनोद कुमार शुक्ल जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊँगा। एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊँगा कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब असंख्य पेड़ खेत कभी नहीं आएँगे मेरे घर खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा। जो लगात…
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बारिश के काँधे पर सिर रखता हूँ | शहंशाह आलम पीड़ा में पेड़ जब दुःख बतियाते हैं दूसरे पेड़ से मैं बारिश के काँधे पर सिर रखता हूँ अपना आदमी बमुश्किल दूसरे का दुःख सुनना पसंद करता है बारिश लेकिन मेरा दुखड़ा सुनने ठहर जाती है कभी खिड़की के पास कभी दरवाज़े पर तो कभी ओसारे में कवि होना कितना कठिन है आज के समय में और गिरहकट होना कितना आसान काम है हत्यारा …
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एक माँ की बेबसी | कुँवर नारायण न जाने किस अदृश्य पड़ोस से निकल कर आता था वह खेलने हमारे साथ— रतन, जो बोल नहीं सकता था खेलता था हमारे साथ एक टूटे खिलौने की तरह देखने में हम बच्चों की ही तरह था वह भी एक बच्चा। लेकिन हम बच्चों के लिए अजूबा था क्योंकि हमसे भिन्न था। थोड़ा घबराते भी थे हम उससे क्योंकि समझ नहीं पाते थे उसकी घबराहटों को, न इशारों में कही …
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Ek Ashwasti - Halki Phulki | Prem Vats
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एक आश्वस्ति - हल्की फुलकी | प्रेम वत्स एक हल्का घुला हुआ गुलाबीपन पंखुरियों की भाँति चिपक-सा जाता है उसके हल्के रोंयेदार गालों के दोनों उट्ठलों से जो हल्का-सा भी अप्रत्याशित होने पर उठ खड़े होते हैं खरगोशी कान जैसे प्रेम में अक्सर उसे भी तुम प्रेम ही कहो जब वह अपनी ठुड्ढी पर तड़के आए हल्के नर्म बालों को वजह-बेवजह अपनी उंगलियों से पुचकारता रहता है औ…
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Amma Bachpan Ko Laut Rahi Hai | Ajay Jugran
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अम्मा बचपन को लौट रही है | अजेय जुगरान उठने को सहारा चाहे अम्मा बचपन को लौट रही है। चलने को सहारा चाहे अम्मा छुटपन को लौट रही है। बैठने को सहारा चाहे अम्मा शिशुपन को लौट रही है। ज़िद्द से न किनारा पाए अम्मा बालपन को लौट रही है। खाते खाना गिराए अम्मा बचपन को लौट रही है। सोने को टी वी चलाए अम्मा छुटपन को लौट रही है। नितकर्म को टालती जाए अम्मा शिशुपन …
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भूखदान | महबूब शांत अंधेरे सन्नाटे के बीच चीखती गुजरती एक आवाज़ लोहे के लोहे से टकराने की या उस भूखे पेट के गुर्राने की जो लेटा है उसी लोहे के सड़क किनारे किसी भिनभिनाती-सी जगह पर खेल रही हैं कुछ मक्खियाँ उसके मुख पर जैसे वो जानती हों कि गरीब यहाँ सिर्फ खेलने की चीज है इस बीच कुछ लोग गुज़रे उधर से उसे निहारते हुए कोई हँसा कोई मुस्कुराया किसी को घृणा …
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Ye Kaisi Vivashta Hai? | Kunwar Narayan
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यह कैसी विवशता है? | कुँवर नारायण यह कैसी विवशता है— किसी पर वार करो वह हँसता रहता या विवाद करता। यह कैसी पराजय है— कहीं घाव करें रक्त नहीं केवल मवाद बहता। अजीब वक़्त है— बिना लड़े ही एक देश का देश स्वीकार करता चला जाता अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता! कुछ तो फ़र्क़ बचता धर्मयुद्ध और कीटयुद्ध में— कोई तो हार-जीत के नियमों में स्वाभिमान के अर्थ को फिर स…
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Kya Aapko Prem Pasand Hai | Shraddha Upadhyay
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क्या आपको प्रेम पसंद है ? | श्रद्धा उपाध्याय मैं पहले भी खो गई थी एक खाई की गहराई के भय में मैं नहीं सुन पाई थी झरने का संगीत शोकगीत लिखने की व्यस्तता में सूरज से आँख ना मिला पाने की निराशा में मैंने फोड़ी ही अपनी आँखें कृत्रिम रौशनियों को घूरकर अतीत के घाव जिन पर लगनी थी समय की मरहम उनको लेकर बेवक्त भागी और तोड़े अपने पैर क्या मैं हमेशा मुँह धोउंगी…
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माँ - ममता कालिया पुराने तख़्त पर यों बैठती हैं जैसे वह हो सिंहासन बत्तीसी। हम सब उनके सामने नीची चौकियों पर टिक जाते हैं या खड़े रहते हैं अक्सर। माँ का कमरा उनका साम्राज्य है। उन्हें पता है यहाँ कहाँ सौंफ की डिबिया है और कहाँ ग्रन्थ साहब कमरे में कोई चौकीदार नहीं है पर यहाँ कुछ भी बगैर इजाज़त छूना मना है। माँ जब ख़ुश होती हैं मर्तबान से निकालकर थो…
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नृत्य - निधि शर्मा मैं नाचती हूं, अपने दुखों के गीत पर। मैं मुस्कुराती हूं जब तुम मुझे छोड़ कर चले जाते हो। मेरे रोम रोम में बजता है विरह का संगीत। और उसमे रस घोलती है मेरे प्राणों की बांसुरी। हर दफा हर दुख के पश्चात् मैं जन्म लेती हृ। पहले से कुछ अलग, पहले से कोमल हृदय और मजबूत भावनाओं के साथ। दुःख के प्रत्येक क्षण को संजो लेती हूं अपने बालों के …
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थोड़ी-सी उम्मीद चाहिए | गगन गिल जैसे मिट्टी में चमकती किरण सूर्य की जैसे पानी में स्वाद भीगे पत्थर का जैसे भीगी हुई रेत पर मछली में तड़पन थोड़ी-सी उम्मीद चाहिए जैसे गूँगे के कंठ में याद आया गीत जैसे हल्की-सी साँस सीने में अटकी जैसे काँच से चिपटे कीट में लालसा जैसे नदी की तह में डूबी हुई प्यास थोड़ी-सी उम्मीद चाहिए…
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संक्रमण | सत्यम तिवारी रेखा के उस पार सब संदिग्ध थे इस तरह वह लंपट था और मुँहफट सूचियों से नदारद चौकसी से अंजान वह जिस देवता को फूल चढ़ाता उसकी कृपा चट्टानी पत्थरों के बरक्स ढुलकती उसकी प्रार्थना अँधेरी काली सड़कों-सी अंतहीन जहाँ नीचे वाला ही ऊपर वाला हो वहाँ फाँसी के फंदे पर गिलोटिन के तख्ते पर उन्मादियों के झंडे पर वह किसके भरोसे चढ़ा? अगर उसे अपन…
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खिचड़ी | अनामिका इतने बरस बीते, इतने बरस ! सन्तोष है तो बस इतना कि मैंने ये बाल धूप में तो सफेद नहीं किए ! इन खिचड़ी बालों का वास्ता, देखा है संसार मैंने भी थोड़ा-सा ! दुनिया के हर कोने क्या जाने क्या-क्या खिचड़ी पक रही है : संसद में, निर्णायक मंडल में, दूर वहाँ इतिहास के खंडहरों में ! 'चाणक्य की खिचड़ी' से लेकर 'बीरबल की खिचड़ी' तक सल्तनतें हैं और …
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लोकतंत्र से उम्मीद | मयंक असवाल एक देश की संसद को कीचड़ के बीचों बीच होना चाहिए ताकि अपने हर अभिभाषण के बाद संसद से निकलते ही एक राजनेता को पुल बनाना याद रहे। एक लोकतांत्रिक कविता को गाँव, मोहल्ले और शहर के हर चौराहे पर होना चाहिए ताकि जनता के बीच आजादी और तानाशाही का अंतर स्पष्ट रहें। एक लेखक को प्रतिपक्ष की कविता लिखने की समझ होनी चाहिए ताकि सिर्…
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बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने (Bada Toot Kar Dil Lagaya Hai Hamne)
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बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने जुदाई को हमदम बनाया है हमने तेरा अक्स आँखों में हमने छिपाया तभी तो न आँसू भी हमने बहाए तेरा नूर दिल में अभी तक है रोशन 'अक़ीदत से तुझको इबादत बनाकर लबों पर ग़ज़ल सा सजाया है हमने.. बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने सबब आशिक़ी का भला क्या बतायें ये दिल की लगी है तो बस दिल ही जाने न सोचा न समझा मोहब्बत से पहले सुकूं चैन अपना…
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चुप की साज़िश | अमृता प्रीतम रात ऊँघ रही है... किसी ने इनसान की छाती में सेंध लगायी है हर चोरी से भयानक यह सपनों की चोरी है। चोरों के निशान - हर देश के हर शहर की हर सड़क पर बैठे हैं पर कोई आँख देखती नहीं, न चौंकती है। सिर्फ़ एक कुत्ते की तरह एक जंजीर से बंधी किसी वक़्त किसी की कोई नज़्म भौंकती है।द्वारा Nayi Dhara Radio
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कविताएं | नरेश सक्सेना जैसे चिड़ियों की उड़ान में शामिल होते हैं पेड़ क्या कविताएँ होंगी मुसीबत में हमारे साथ? जैसे युद्ध में काम आए सैनिक की वर्दी और शस्त्रों के साथ खून में डूबी मिलती है उसके बच्चे की तस्वीर क्या कोई पंक्ति डूबेगी खून में? जैसे चिड़ियों की उड़ान में शामिल होते हैं पेड़ मुसीबत के वक्त कौन सी कविताएँ होंगी हमारे साथ लड़ाई के लिए उठ…
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गायत्री | कुशाग्र अद्वैत तुमसे कभी मिला नहीं कभी बातचीत नहीं हुई कहने को कह सकते हैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानता ऐसा भी नहीं कि एकदम नहीं जानता ख़बर है कि इस नगर में नई आई हो इधर एक कामचलाऊ कमरा ढूँढ़ने में व्यस्त रही और रोज़गार की दुश्चिंताएँ कुतरती रहीं तुमको रात के इस पहर तुम्हारे नाम कविता लिखने बैठ जाऊँ ऐसी हिमाक़त करने जितना तो शायद नहीं जान…
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हिंदी सी माँ | अजेय जुगरान जब पर्दे खोलने पर ठंड की नर्म धूप पलंग तक आ गई तो बड़ा भाई गेट पर अटका हिंदी अख़बार ले आया माँ के लिए। तेज़ी से वर्तमान भूल रही माँ अब रज़ाई के भीतर ही बैठ तीन तकियों पर टिका पीठ होने लगी तैयार उसे पढ़ने को। सर पर पल्लू माथे पर बिंदी हृदय में भाषा मन में जिज्ञासा हाथ में हिंदी अख़बार और उसे पढ़ने को भूली ऐनक ढूँढती मेरी मा…
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अबकी अगर लौटा तो | कुँवर नारायण अबकी अगर लौटा तो बृहत्तर लौटूंगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछे नहीं कमर में बाँधे लोहे की पूँछें नहीं जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को तरेर कर न देखूँगा उन्हें भूखी शेर-आँखों से अबकी अगर लौटा तो मनुष्यतर लौटूंगा घर से निकलते सड़कों पर चलते बसों पर चढ़ते ट्रेनें पकड़ते जगह-बेजगह कुचला पड़ा पिद्दी-सा जानवर नहीं अगर बचा रहा त…
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हारे हुए बुद्धिजीवी का वक्तव्य | सत्यम तिवारी हारे हुए बुद्धि जीवी का वक्तव्य मैं माफ़ी माँगता हूँ जैसे हिम्मत माँगता हूँ मेरे कंधे पर बेलगाम वितृष्णाएँ मेरा चेहरा हारे हुए राजा का रनिवास में जाते हुए मेरी मुद्रा भाड़ में जाते मुल्क की नाव जले सैनिक का मेरा नैराश्य मैं अपना हिस्सा सिर्फ़ इसलिए नहीं छोडूँगा कि संतोष परम सुख है या मृत्यु में ही मुक्त…
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वापसी | केदारनाथ सिंह आज उस पक्षी को फिर देखा जिसे पिछले साल देखा था लगभग इन्हीं दिनों इसी शहर में क्या नाम है उसका खंजन टिटिहिरी, नीलकंठ मुझे कुछ भी याद नहीं मैं कितनी आसानी से भूलता जा रहा हूँ पक्षियों के नाम मुझे सोचकर डर लगा आख़िर क्या नाम है उसका मैं खड़ा-खड़ा सोचता रहा और सिर खुजलाता रहा और यह मेरे शहर में एक छोटे-से पक्षी के लौट आने का विस्फ…
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(अ)विकल्प | किंशुक गुप्ता तुम्हारी महत्वकांक्षाओं से माँ चटक गई है मेरी रीढ़ की हड्डी जिस लहज़े से तुमने पिता सुनाया था फ़रमान कि रेप में लड़की की गलती ज़रूर होगी मैं समझ गया था मेरे धुकधुकाते दिल को किसी भी दिन घोषित कर दोगे टाइम बम मेरे आकाश के सभी नक्षत्र अनाथ होते जा रहे हैं चीटियों की बेतरतीब लकीरों से काली पड़ रही है सफेद पक्षी की देह चोंच के हर…
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नट | राजेश जोशी दीमकें जगह-जगह से खा चुकी हैं तुम्हारे बाँसों को भूख खा चुकी है तुम्हारा सारा बदन क़दमों को साधकर चलते हो जिस रस्सी पर इस छोर से उस छोर टूट चुके हैं उसके रेशे, जर्जर हो चुकी है वो रस्सी जब-जब शुरू करते हो तुम अपना खेल कहीं बहुत क़रीब से आती है यम के भैंसे के खुरों की आवाज़ कहीं बहुत पास सुनाई पड़ती हैं उसके गले में लटकी घंटियाँ। नट!…
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बसंत आया | केदारनाथ अग्रवाल बसंत आया : पलास के बूढ़े वृक्षों ने टेसू की लाल मौर सिर पर धर ली! विकराल वनखंडी लजवंती दुलहिन बन गई, फूलों के आभूषण पहन आकर्षक बन गई। अनंग के धनु-गुण के भौरे गुनगुनाने लगे, समीर की तितिलियों के पंख गुदगुदाने लगे। आम के अंग बौरों की सुगंध से महक उठे, मंगल-गान के सब गायक पखेरू चहक उठे। विकराल : भयंकर, भयानक वनखंडी: वन का ए…
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मेरी यह कविता "प्रतिशोध" पुलवामा के वीर बलिदानियों और भारतीय वायु सेना के पराक्रमी योद्धाओं को समर्पित हैचलो फिर याद करते हैं कहानी उन जवानों की।बने आँसू के दरिया जो, लहू के उन निशानों की॥......नमन चालीस वीरों को, यही संकल्प अपना है।बचे कोई न आतंकी, यही हम सब का सपना है॥The full Poem is available for your listening.You can write to me on HindiPoems…
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तितलियों की भाषा | मयंक असवाल यदि मुझे तितलियों कि भाषा आती मैं उनसे कहता तुम्हारी पीठ पर जाकर बैठ जाएं बिखेर दें अपने पंखों के रंग जहाँ जहाँ मेरे चुम्बन की स्मृतियाँ शेष बची हैं ताकि वो जगह इस जीवन के अंत तक महफूज रहे। महफूज़ रहे, वो हर एक कविता जिन्होंने अपनी यात्राएँ तुम्हारी पीठ से होकर की जिनकी उत्पत्ति तुमसे हुई और अंत तुम्हारे प्रेम के साथ य…
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लोग कहते है | ममता कालिया लोग कहते हैं मैं अपना ग़ुस्सा कम करूँ समझदार औरतों की तरह सहूँ और चुप रहूँ। ग़ुस्सा कैसे कम किया जाता है? क्या यह चाट के ऊपर पड़ने वाला मसाला है या रेडियो का बटन? जिसे कभी भी कर दो ज़्यादा या कम। यह तो मेरे अन्दर की आग है। एक खौलता कढ़ाह, मेरा दिमाग़ है। मैं एक दहका हुआ कोयला जिस पर जिन्होंने ईंधन डाला है और तेल, फिर हवा भी क…
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