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Nayidhara Ekal

Nayi Dhara Radio

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मासिक+
 
साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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Pratidin Ek Kavita

Nayi Dhara Radio

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रोज
 
कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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BHARATVANI... Kavita Sings INDIA

Kavita Sings India भारतवाणी

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साप्ताहिक
 
BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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TC LITERATURE

Tanishchavan

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मासिक
 
TC literature is one of the four fundamental pillars of TC crafts. This TC crafts deals with words .. Framing of words to form a Song , scripts , stories , poems , memes and others .. Tanishchavan created this to grow himself as a writer and hone his writing skills .This TC Literature is the last and the biggest mystery box of Tanishchavan which blasts and omits world and no swords .
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Udaya Raj Sinha Ki Rachnayein Podcast

Nayi Dhara Radio

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साप्ताहिक
 
स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। खड़ी बोली प्रसिद्ध गद्य लेखक राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह के पुत्र उदय राज सिंह ने अपने पिता की साहित्यिक धरोहर को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत से उपन्यास, कहानियाँ, लघुकथाएँ, नाटक आदि लिखे। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। उदयराज जी के इस जन्मशती वर्ष में हम उ ...
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Sindhi Sanskriti with Tamana and Meena : Sindhi Samaj Podcast

Audio Pitara by Channel176 Productions

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साप्ताहिक
 
एक ऐसी संस्कृति जो दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है, जो मुअन-जो-दड़ो से शुरू होती है या उससे भी पहले की हो सकती है। सिंधी भाषा प्राचीन और साहित्य की दृष्टि से समृद्ध है। सिंधी साहित्य जगत के साहित्यकारों ने सिंधी साहित्य को बहुत समृद्ध बनाया है। कोण है सिंधीयो के देवता? सिंधी साहित्य में सबसे पहला संदर्भ किस इतिहासकारों के लेखन में मिलता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए सुनिए सिंधी संस्कृति with तमन्ना और मीणा सिर्फ ऑडियो पिटारा पर. आपको ये शो कैसा लगा? ये कमेंट करके जरू ...
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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THE SHIVANKIT VOICE

Shivankit Tiwari

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रोज+
 
आप सभी का स्वागत है! कृपया सुनें और अपना प्यार दे❤️🌻 This Show Presents Only Poetry,Stories and Many more Hindi Literature.
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"Urvashi" by Ramdhari Singh Dinkar is a celebrated epic poem in Hindi literature. It reimagines the tale of Urvashi, the celestial nymph, and her relationship with King Pururava. Dinkar's poetic brilliance and storytelling prowess breathe new life into this classic mythological narrative, exploring themes of love, desire, and the eternal quest for immortality. Visit https://krity.app/ for more books and to become a narrator. Follow us on Instagram @krity.app and stay updated with the latest ...
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Chanakya Neeti (Sutra Sahit)

Audio Pitara by Channel176 Productions

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मासिक
 
This audiobook is a compilation of teachings by Chanakya, a prominent figure in ancient Indian literature. Among the numerous works of ethics literature in Sanskrit, Chanakya Neeti holds a significant place. It provides practical advice in a succinct style to lead a happy and successful life. Its main focus is to impart practical wisdom for every aspect of life. It emphasizes values like righteousness, culture, justice, peace, education, and the overall progress of human life. This book beau ...
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Kahani Train

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
कहानी ट्रेन यानी बच्चों की कहानियाँ, सीधे आपके फ़ोन तक। यह पहल है आज के दौर के बच्चों को साहित्य और किस्से कहानियों से जोड़ने की। प्रथम, रेख़्ता व नई धारा की प्रस्तुति।
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Nayi Dhara Samvaad Podcast

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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***Winner of Best Storytelling Fiction Podcast 2022 by Hubhopper*** Kahani Jaani Anjaani is a Hindi Stories (kahaani) podcast series narrated by theatre and voiceover artist, Piyush Agarwal. Following the mission of making sure no stories get lost he takes you to the world of Beautiful Hindi narrations & emotions. So stay tuned for new and old Hindi stories - every Friday! His weekly dramatized narrations of lesser known stories from popular authors like Premchand, Bhishm Sahani, Mannu Bhand ...
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Navbharat Gold from the house of BCCL (Times Group), is a first of a kind Hindi Podcast Infotainment Service in the world, offering an unmatched range and quality of content across multiple genres such as Hindi audio news, current affairs, science, audio-documentaries, sports, economy, history, spirituality, art and literature, life lessons, relationships and much more. To listen to a much wider range of such exclusive Hindi podcasts, visit us at www.navbharatgold.com
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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Munshi Premchand known as Katha Samrat of Hindi Literature. Out of the stories and novels he has written we know a very few of famous stories & novels written by him like Godaan, Nirmala, Bade Bhaisahab, kafan, buddhi Kaaki etc. But these are not the only stories which define his writing. Out of the 300 stories written by Munshi Premchand in Hindi, still there are stories which are unheard & unread. Indipodcaster presents unheard Premchand stories 'Premchand Ki Ansuni Kahaniyan' where member ...
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अभुवाता समाज | रूपम मिश्र वे शीशे-बासे से नहीं हरी कनई मिट्टी से बनी थीं जिसमें इतनी नमी थी कि एक सत्ता की चाक पर मनचाहा ढाल दिया जाता नाचती हुई एक स्त्री को अचानक कुछ याद आ जाता है सहम कर खड़ी हो जाती है माथे के पल्‍्लू को और खींच कर दर्द को दबा कर एक भरभराई-सी हँसी हँसती है हमार मालिक बहुत रिसिकट हैं हमरा नाचना उनका नाहीं नीक लगता साथ पुराती दूसर…
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'वह सोना है बेकार जो कानों को करे तार - तार । वह सोने की बालियाँ हैं बेकार, जो कानों पर करे वार।'' किसी बात को असरदार ढंग से और बंद शब्दो में बोलना एक कला है। मुहावरों से भाषा की सुंदरता बनी रहती है।ऐसे ही सिंधी भाषा में अनंत मुहावरे, कहावते कहे गए हैं, जो जीवन के अनुभवों से कहे गए हैं ।आज भी कहे गए वही मुहावरे और कहावते बेहतर जीवन की राह रोशन करते…
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हम औरतें हैं मुखौटे नहीं - अनुपम सिंह वह अपनी भट्ठियों में मुखौटे तैयार करता है उन पर लेबुल लगाकर सूखने के लिए लग्गियों के सहारे टाँग देता है सूखने के बाद उनको अनेक रासायनिक क्रियाओं से गुज़ारता है कभी सबसे तेज़ तापमान पर रखता है तो कभी सबसे कम ऐसा लगातार करने से अप्रत्याशित चमक आ जाती है उनमें विस्फोटक हथियारों से लैस उनके सिपाही घर-घर घूम रहे हैं क…
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नई धारा एकल के इस एपिसोड में देखिए मशहूर अभिनेता विपिन शर्मा द्वारा, राजेंद्र यादव द्वारा अनुदित आल्बेयर कामू के उपन्यास ‘अजनबी’ में से एक अंश। नई धारा एकल श्रृंखला में अभिनय जगत के सितारे, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों में से अंश प्रस्तुत करेंगे और साथ ही साझा करेंगे उन नाटकों से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत यादें। दिनकर की कृति ‘रश्मिरथी’ से मोहन राकेश के नाट…
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क्रांतिपुरुष | चित्रा पँवार कल रात सपने के बगीचे में हवाखोरी करते भगत सिंह से मुलाकात हो गई मैंने पूछा शहीव-ए-आज़म! तुम क्रांतिकारी ना होते तो क्‍या होते? वह ठहाका मारकर हँसे फिर भी क्रांतिकारी ही होता पगली ! खेतों में धान त्रगाता हल चलाता और भूख के विरुद्ध कर देता क्रांति मगर सोचो अगर खेत भी ना होते तुम्हारे पास! तब क्‍या करते!! फिर,,ऐसे में कल्रम…
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शीतलहरी में एक बूढ़े आदमी की प्रार्थना | केदारनाथ सिंह ईश्वर इस भयानक ठंड में जहाँ पेड़ के पत्ते तक ठिठुर रहे हैं मुझे कहाँ मिलेगा वह कोयला जिस पर इन्सानियत का खून गरमाया जाता है एक ज़िन्दा लाल दहकता हुआ कोयला मेरी अँगीठी के लिए बेहद ज़रूरी और हमदर्द कोयला मुझे कहाँ मिलेगा इस ठंड से अकड़े हुए शहर में जहाँ वह हमेशा छिपाकर रखा जाता है घर के पिछवाड़े या …
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तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है | हरिवंशराय बच्चन तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है। देखी मैंने बहुत दिनों तक दुनिया की रंगीनी, किंतु रही कोरी की कोरी मेरी चादर झीनी, तन के तार छूए बहुतों ने मन का तार न भीगा, तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है। अंबर ने ओढ़ी है तन पर चादर नीली-नीली, हरित धरित्री के आँगन में सरसों पीली-पीली, सिंदूरी मंजरियों से ह…
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स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। आज सुनिए उदय राज जी द्वारा लिखा लेख ‘होली पर परिचर्चा’ मौलश्री कुलकर्णी की आवाज़ में। नई धार…
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धरती का शाप | अनुपम सिंह मौत की ओर अग्रसर है धरती मुड़-मुड़कर देख रही है पीछे की ओर उसकी आँखें खोज रही हैं आदिम पुरखिनों के पद-चिह्न उन सखियों को खोज रही हैं जिनके साथ बड़ी होती फैली थी गंगा के मैदानों तक उसकी यादों में घुल रही हैं मलयानिल की हवाएँ जबकि नदियाँ मृत पड़ी हैं उसकी राहों में नदियों के कंकाल बटोरती मौत की ओर अग्रसर है धरती वह ले जा रही …
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पीत कमल | नन्दकिशोर आचार्य जल ही जल की नीली-दर-नीली गहराई के नीचे जमे हुए काले दलदल ही दलदल में अपनी ही पूँछ पर सर टिका कर सो रहा था वह : उचटा अचानक भूला हुआ कुछ कहीं जैसे सुगबुगाने लगे। कुछ देर उन्मन, याद करता-सा उसी बिसरी राग की धुन जल के दबावों में कहीं घुटती हुई एक-एक कर लगीं खुलने सलवटें सारी तरंग-सी व्याप गयी जल में : अपनी ही पूँछ के बल खड़ा …
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उनका जीवन | अनुपम सिंह ख़ाली कनस्तर-सा उदास दिन बीतता ही नहीं रात रज़ाइयों में चीख़ती हैं कपास की आत्माएँ जैसे रुइयाँ नहीं आत्माएँ ही धुनी गई हों गहरी होती बिवाइयों में झलझलाता है नर्म ख़ून किसी चूल्हे की गर्म महक लाई है पछुआ बयार अंतड़ियों की बेजान ध्वनियों से फूट जाती है नकसीर भूख और भोजन के बीच ही वे लड़ रहे हैं लड़ाई बाइस्कोप की रील-सा बस! यहीं उलझ गय…
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किसी बात को असरदार ढंग से और बंद शब्दो में बोलना एक कला है। मुहावरों से भाषा की सुंदरता बनी रहती है।ऐसे ही सिंधी भाषा में अनंत मुहावरे, कहावते कहे गए हैं, जो जीवन के अनुभवों से कहे गए हैं ।आज भी कहे गए वही मुहावरे और कहावते बेहतर जीवन की राह रोशन करते हैं। सिंधी संस्कृति पॉडकास्ट पर बने रहे । सिर्फ़ ऑडियो पिटारा पर।…
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लेकर सीधा नारा | शमशेर बहादुर सिंह लेकर सीधा नारा कौन पुकारा अंतिम आशाओं की संध्याओं से? पलकें डूबी ही-सी थीं— पर अभी नहीं; कोई सुनता-सा था मुझे कहीं; फिर किसने यह, सातों सागर के पार एकाकीपन से ही, मानो—हार, एकाकी उठ मुझे पुकारा कई बार? मैं समाज तो नहीं; न मैं कुल जीवन; कण-समूह में हूँ मैं केवल एक कण। —कौन सहारा! मेरा कौन सहारा!…
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आज़ादी अभी अधूरी है- सच है यह बात समझ प्यारे। कुछ सुविधाओं के टुकड़े खा- मत नौ-नौ बाँस उछल प्यारे। गोरे गैरों का जुल्म था कल अब सितम हमारे अपनों का ये कुछ भी कहें, पर देश बना नहीं भीमराव के सपनों का। एक डाल ही क्यों? एक फूल ही क्‍यों? सारा उद्यान बदल प्यारे। आज़ादी अभी अधूरी है। सच है ये बात समझ प्यारे। है जिसका लहू मयखाने में वो वसर आज तसना-लव है …
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मैंने देखा | ज्योति पांडेय मैंने देखा, वाष्प को मेघ बनते और मेघ को जल। पैरों में पृथ्वी पहन उल्काओं की सँकरी गलियों में जाते उसे मैंने देखा। वह नाप रहा था जीवन की परिधि। और माप रहा था मृत्यु का विस्तार; मैंने देखा। वह ताक रहा था आकाश और तकते-तकते अनंत हुआ जा रहा था। वह लाँघ रहा था समुद्र और लाँघते-लाँघते जल हुआ जा रहा था। वह ताप रहा था आग और तपते-त…
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Soundaryalahari Shlok 80_कुचौ सद्यः स्विद्य-त्तटघटित-कूर्पासभिदुरौ_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaकुचौ सद्यः स्विद्य-त्तटघटित-कूर्पासभिदुरौकषन्तौ-दौर्मूले कनककलशाभौ कलयता ।तव त्रातुं भङ्गादलमिति वलग्नं तनुभुवात्रिधा नद्ध्म् देवी त्रिवलि लवलीवल्लिभिरिव ॥ 80 ॥--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/kavita…
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कसौटियाँ | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 'जो एक का सत्य है वही सबका सत्य है' —यह बात बहुत सीधी थी लेकिन वे चीजों पर उलटा विचार करते थे उन्होंने सबके लिए एक आचार—संहिता तैयार की थी लेकिन खुद अपने विशेषाधिकार में जीते थे उनकी कसौटियाँ झाँवें की तरह खुरदरी थीं जिसे वे आदमियों की त्वचा पर रगड़ते थे और इस तरह कसते थे आदमी को आदमी बड़ा था और कसौटियाँ छोटी इस पर…
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स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। आज सुनिए उदय राज जी द्वारा लिखा संस्मरण ‘कुछ अपनी कुछ उनकी’ आरती जैन की आवाज़ में। नई धारा र…
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ज़िलाधीश | आलोक धन्वा तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो। तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो! एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं हुआ था! तुम क्या सोचते हो संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को वैसा ही रहने दिया जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी? यह जो आदमी मेज़ की दूसरी ओर सुन रह है तुम्हें कितने करीब और ध्यान से यह राजा …
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तिरोहित सितार | दामोदर खड़से खूँखार समय के घनघोर जंगल में बहरा एकांत जब देख नहीं पाता अपना आसपास... तब अगली पीढ़ी की देहरी पर कोई तिरोहित सितार अपने विसर्जन की कातर याचना करती है यादों पर चढ़ी धूल हटाने वाला कोई भी तो नहीं होता तब जब आँसू दस्तक देते हैं– बेहिसाब! मकान छोटा होता जाता है और सितार ढकेल दी जाती है कूड़े में आदमी की तरह... सितार के अंतर …
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सीख | बलराज साहनी वैज्ञानिकों का कथन है कि डरे हुए मनुष्य के शरीर से एक प्रकार की बास निकलती है जिसे कुत्ता झट सूँघ लेता है और काटने दौड़ता है। और अगर आदमी न डरे तो कुत्ता मुँह खोल मुस्कुराता, पूँछ हिलाता मित्र ही नहीं, मनुष्य का ग़ुलाम भी बन जाता है। तो प्यारे! अगर जीने की चाह है, जीवन को बदलने की चाह है तो इस तत्व से लाभ उठाएँ, इस मंत्र की महिमा गा…
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किसी बात को असरदार ढंग से और बंद शब्दो में बोलना एक कला है। मुहावरों से भाषा की सुंदरता बनी रहती है।ऐसे ही सिंधी भाषा में अनंत मुहावरे, कहावते कहे गए हैं, जो जीवन के अनुभवों से कहे गए हैं ।आज भी कहे गए वही मुहावरे और कहावते बेहतर जीवन की राह रोशन करते हैं। सिंधी संस्कृति पॉडकास्ट पर बने रहे । सिर्फ़ ऑडियो पिटारा पर।…
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कुछ बन जाते हैं | उदय प्रकाश कुछ बन जाते हैं तुम मिसरी की डली बन जाओ मैं दूध बन जाता हूँ तुम मुझमें घुल जाओ। तुम ढाई साल की बच्ची बन जाओ मैं मिसरी घुला दूध हूँ मीठा मुझे एक साँस में पी जाओ। अब मैं मैदान हूँ तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ। मुझमें दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ। मेरे कंधों पर चढ़ो और फिसलो । मैं सेमल का पेड़ हूँ मुझे ज़ोर-ज़ोर से झकझोरो और मेर…
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नई धारा एकल के इस एपिसोड में देखिए मशहूर अभिनेता विपिन शर्मा द्वारा, राजेंद्र यादव द्वारा अनुदित आल्बेयर कामू के उपन्यास ‘अजनबी’ में से एक अंश। नई धारा एकल श्रृंखला में अभिनय जगत के सितारे, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों में से अंश प्रस्तुत करेंगे और साथ ही साझा करेंगे उन नाटकों से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत यादें। दिनकर की कृति ‘रश्मिरथी’ से मोहन राकेश के नाट…
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सूर्य ढलता ही नहीं | रामदरश मिश्र | आरती जैन चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं है दोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है! आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों से बंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों से हैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तर चिड़चिड़ाकर कह रहे- ‘कम्बख़्त, जलता ही नहीं है!’ बदलियाँ घिरतीं, हवाएँ काँपती, रोता अंधेरा लोग गिरत…
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टेढ़ी कमर की औरतें | ऐश्वर्य विजय अमृत राज छः-सात साल की लड़कियाँ छोटे भाइयों/बड़े भाई के बच्चे के साथ/ सोलह साल की सालभर पुरानी कन्याएँ अपने बच्चे/जेठानी के बच्चे के साथ चालीस-साठ की दादी/नानी कमर एक तरफ निकालकर बच्चे को लटकाए कुल्हे की हड्डी से, हो जाती हैं पेड़ के किसी टेढ़े तने सी तिरछी, और ठोंस, किसी पुरानी सभ्यता की मूर्ति सी, जो टिकी-बची हो हर मौ…
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क़िले में बच्चे | नरेश सक्सेना क़िले के फाटक खुले पड़े हैं और पहरेदार गायब ड्योढ़ी में चमगादड़ें दीवाने ख़ास में जाले और हरम बेपर्दा हैं सुल्तान दौड़ो! आज किले में भर गए हैं बच्चे उन्होंने तुम्हारी बुर्जियों, मेहराबों, खंभों और कंगूरों पर लिख दिए हैं अपने नाम कक्षाएँ और स्कूल के पते अब वे पूछ रहे हैं सवाल कि सुल्तान के घर का इतना बड़ा दरवाज़ा उसकी इतन…
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स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। आज सुनिए उदय राज जी द्वारा लिखा संस्मरण ‘बिहार की चार विभूतियाँ’ कार्तिकेय खेतरपाल की आवाज़ …
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चुनाव की चोट | काका हाथरसी हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट? वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई। उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥ कह ‘काका’ कवि, बर्राते हैं सोते सोते। रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते रोते॥द्वारा Nayi Dhara Radio
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जो कुछ देखा-सुना, समझा, लिख दिया | निर्मला पुतुल बिना किसी लाग-लपेट के तुम्हें अच्छा लगे, ना लगे, तुम जानो चिकनी-चुपड़ी भाषा की उम्मीद न करो मुझसे जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते मेरी भाषा भी रूखड़ी हो गई है मैं नहीं जानती कविता की परिभाषा छंद, लय, तुक का कोई ज्ञान नहीं मुझे और न ही शब्दों और भाषाओं में है मेरी पकड़ घर-गृहस्थी सँभालते लड़ते अपने …
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Step into the world of political intrigue as we dissect the emerging speculations surrounding a possible alliance between the Bharatiya Janata Party (BJP) and the Biju Janata Dal (BJD) in Odisha. Prime Minister Narendra Modi's recent visit has sparked rumors, and our podcast explores the behind-the-scenes meetings, statements, and political dynamic…
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Soundaryalahari Shlok 79_निसर्ग-क्षीणस्य स्तनतट-भरेण क्लमजुषो_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaनिसर्ग-क्षीणस्य स्तनतट-भरेण क्लमजुषोनमन्मूर्ते र्नारीतिलक शनकै-स्त्रुट्यत इव ।चिरं ते मध्यस्य त्रुटित तटिनी-तीर-तरुणासमावस्था-स्थेम्नो भवतु कुशलं शैलतनये ॥ 79 ॥--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/kavita-sing…
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जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे | विनोद कुमार शुक्ल जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊँगा। एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊँगा कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब असंख्य पेड़ खेत कभी नहीं आएँगे मेरे घर खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा। जो लगात…
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किसी बात को असरदार ढंग से और बंद शब्दो में बोलना एक कला है। मुहावरों से भाषा की सुंदरता बनी रहती है।ऐसे ही सिंधी भाषा में अनंत मुहावरे, कहावते कहे गए हैं, जो जीवन के अनुभवों से कहे गए हैं ।आज भी कहे गए वही मुहावरे और कहावते बेहतर जीवन की राह रोशन करते हैं। जैसा व्यवहार हम यानि माता-पिता करेंगे, जैसे संस्कार देंगे, वैसा ही हमारे बच्चे हम से सीखेंगे …
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बारिश के काँधे पर सिर रखता हूँ | शहंशाह आलम पीड़ा में पेड़ जब दुःख बतियाते हैं दूसरे पेड़ से मैं बारिश के काँधे पर सिर रखता हूँ अपना आदमी बमुश्किल दूसरे का दुःख सुनना पसंद करता है बारिश लेकिन मेरा दुखड़ा सुनने ठहर जाती है कभी खिड़की के पास कभी दरवाज़े पर तो कभी ओसारे में कवि होना कितना कठिन है आज के समय में और गिरहकट होना कितना आसान काम है हत्यारा …
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एक माँ की बेबसी | कुँवर नारायण न जाने किस अदृश्य पड़ोस से निकल कर आता था वह खेलने हमारे साथ— रतन, जो बोल नहीं सकता था खेलता था हमारे साथ एक टूटे खिलौने की तरह देखने में हम बच्चों की ही तरह था वह भी एक बच्चा। लेकिन हम बच्चों के लिए अजूबा था क्योंकि हमसे भिन्न था। थोड़ा घबराते भी थे हम उससे क्योंकि समझ नहीं पाते थे उसकी घबराहटों को, न इशारों में कही …
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एक आश्वस्ति - हल्की फुलकी | प्रेम वत्स एक हल्का घुला हुआ गुलाबीपन पंखुरियों की भाँति चिपक-सा जाता है उसके हल्के रोंयेदार गालों के दोनों उट्ठलों से जो हल्का-सा भी अप्रत्याशित होने पर उठ खड़े होते हैं खरगोशी कान जैसे प्रेम में अक्सर उसे भी तुम प्रेम ही कहो जब वह अपनी ठुड्ढी पर तड़के आए हल्के नर्म बालों को वजह-बेवजह अपनी उंगलियों से पुचकारता रहता है औ…
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अम्मा बचपन को लौट रही है | अजेय जुगरान उठने को सहारा चाहे अम्मा बचपन को लौट रही है। चलने को सहारा चाहे अम्मा छुटपन को लौट रही है। बैठने को सहारा चाहे अम्मा शिशुपन को लौट रही है। ज़िद्द से न किनारा पाए अम्मा बालपन को लौट रही है। खाते खाना गिराए अम्मा बचपन को लौट रही है। सोने को टी वी चलाए अम्मा छुटपन को लौट रही है। नितकर्म को टालती जाए अम्मा शिशुपन …
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स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। आज सुनिए उदय राज जी द्वारा लिखा लेख ‘अंगूर में छटी हैं पानी की चार बूँदें’ मौलश्री कुलकर्णी …
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भूखदान | महबूब शांत अंधेरे सन्नाटे के बीच चीखती गुजरती एक आवाज़ लोहे के लोहे से टकराने की या उस भूखे पेट के गुर्राने की जो लेटा है उसी लोहे के सड़क किनारे किसी भिनभिनाती-सी जगह पर खेल रही हैं कुछ मक्खियाँ उसके मुख पर जैसे वो जानती हों कि गरीब यहाँ सिर्फ खेलने की चीज है इस बीच कुछ लोग गुज़रे उधर से उसे निहारते हुए कोई हँसा कोई मुस्कुराया किसी को घृणा …
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यह कैसी विवशता है? | कुँवर नारायण यह कैसी विवशता है— किसी पर वार करो वह हँसता रहता या विवाद करता। यह कैसी पराजय है— कहीं घाव करें रक्त नहीं केवल मवाद बहता। अजीब वक़्त है— बिना लड़े ही एक देश का देश स्वीकार करता चला जाता अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता! कुछ तो फ़र्क़ बचता धर्मयुद्ध और कीटयुद्ध में— कोई तो हार-जीत के नियमों में स्वाभिमान के अर्थ को फिर स…
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क्या आपको प्रेम पसंद है ? | श्रद्धा उपाध्याय मैं पहले भी खो गई थी एक खाई की गहराई के भय में मैं नहीं सुन पाई थी झरने का संगीत शोकगीत लिखने की व्यस्तता में सूरज से आँख ना मिला पाने की निराशा में मैंने फोड़ी ही अपनी आँखें कृत्रिम रौशनियों को घूरकर अतीत के घाव जिन पर लगनी थी समय की मरहम उनको लेकर बेवक्त भागी और तोड़े अपने पैर क्या मैं हमेशा मुँह धोउंगी…
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किसी बात को असरदार ढंग से और बंद शब्दो में बोलना एक कला है। मुहावरों से भाषा की सुंदरता बनी रहती है।ऐसे ही सिंधी भाषा में अनंत मुहावरे, कहावते कहे गए हैं, जो जीवन के अनुभवों से कहे गए हैं ।आज भी कहे गए वही मुहावरे और कहावते बेहतर जीवन की राह रोशन करते हैं। पहले अपने, पीछे पराए – यह एक प्रचलित मुहावरा है जो सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित है।ऐसा …
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माँ - ममता कालिया पुराने तख़्त पर यों बैठती हैं जैसे वह हो सिंहासन बत्तीसी। हम सब उनके सामने नीची चौकियों पर टिक जाते हैं या खड़े रहते हैं अक्सर। माँ का कमरा उनका साम्राज्य है। उन्हें पता है यहाँ कहाँ सौंफ की डिबिया है और कहाँ ग्रन्थ साहब कमरे में कोई चौकीदार नहीं है पर यहाँ कुछ भी बगैर इजाज़त छूना मना है। माँ जब ख़ुश होती हैं मर्तबान से निकालकर थो…
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नई धारा एकल के इस एपिसोड में देखिए प्रसिद्ध अभिनेता वीरेंद्र सक्सेना द्वारा भीष्म साहनी के नाटक ‘हानूश’ में से एक अंश। नई धारा एकल श्रृंखला में अभिनय जगत के सितारे, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों में से अंश प्रस्तुत करेंगे और साथ ही साझा करेंगे उन नाटकों से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत यादें। दिनकर की कृति ‘रश्मिरथी’ से मोहन राकेश के नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ तक और …
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नृत्य - निधि शर्मा मैं नाचती हूं, अपने दुखों के गीत पर। मैं मुस्कुराती हूं जब तुम मुझे छोड़ कर चले जाते हो। मेरे रोम रोम में बजता है विरह का संगीत। और उसमे रस घोलती है मेरे प्राणों की बांसुरी। हर दफा हर दुख के पश्चात्‌ मैं जन्म लेती हृ। पहले से कुछ अलग, पहले से कोमल हृदय और मजबूत भावनाओं के साथ। दुःख के प्रत्येक क्षण को संजो लेती हूं अपने बालों के …
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थोड़ी-सी उम्मीद चाहिए | गगन गिल जैसे मिट्टी में चमकती किरण सूर्य की जैसे पानी में स्वाद भीगे पत्थर का जैसे भीगी हुई रेत पर मछली में तड़पन थोड़ी-सी उम्मीद चाहिए जैसे गूँगे के कंठ में याद आया गीत जैसे हल्की-सी साँस सीने में अटकी जैसे काँच से चिपटे कीट में लालसा जैसे नदी की तह में डूबी हुई प्यास थोड़ी-सी उम्मीद चाहिए…
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संक्रमण | सत्यम तिवारी रेखा के उस पार सब संदिग्ध थे इस तरह वह लंपट था और मुँहफट सूचियों से नदारद चौकसी से अंजान वह जिस देवता को फूल चढ़ाता उसकी कृपा चट्टानी पत्थरों के बरक्स ढुलकती उसकी प्रार्थना अँधेरी काली सड़कों-सी अंतहीन जहाँ नीचे वाला ही ऊपर वाला हो वहाँ फाँसी के फंदे पर गिलोटिन के तख्ते पर उन्मादियों के झंडे पर वह किसके भरोसे चढ़ा? अगर उसे अपन…
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स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। आज सुनिए उदय राज जी द्वारा लिखा संस्मरण ‘तो 'नई धारा' का प्रकाशन बंद कर दिया जाए’ कार्तिकेय …
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खिचड़ी | अनामिका इतने बरस बीते, इतने बरस ! सन्तोष है तो बस इतना कि मैंने ये बाल धूप में तो सफेद नहीं किए ! इन खिचड़ी बालों का वास्ता, देखा है संसार मैंने भी थोड़ा-सा ! दुनिया के हर कोने क्या जाने क्या-क्या खिचड़ी पक रही है : संसद में, निर्णायक मंडल में, दूर वहाँ इतिहास के खंडहरों में ! 'चाणक्य की खिचड़ी' से लेकर 'बीरबल की खिचड़ी' तक सल्तनतें हैं और …
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